Sunday 28 October 2012

चैन से जीने के लिए सहनशीलता चाहिए

नारी जब दुर्गा रूप धर तुमसे लेने लगेगी इंतकाम
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चैन से जीने के लिए, जो सहनशीलता चाहिए
वह तो तुम में है ही नहीं, तो कैसे जिओगे
तुम तो चाहते हो कि घर वाली बस
घर में पड़ी रहे, एक वस्तु की तरह
ना सुने-बोले कुछ भी, मूक-बधिर हो जाए!

तुम गुलछर्रे उड़ाओ बाहर
पी-पाकर घर भी लाओ
ना बोले वह तो नाको चने चबवाओ|

तुम चाहते हो
हर वक्त तुम अपनी मनमानी करो
घर बाहर रासलीला करो
और पत्नियों से कहो, तुम मौन रहो !
एक कोने में जैसे पड़ी हो, बस यूँ ही पड़ी रहो|

पत्निया व्रत रखती है कि तुम्हारी उम्र बढ़े
तुम तो वह भी नहीं कर सकते!
चाहते हो, जल्दी मरे दूजी ला बैठाये
तुम्हें तो ना बच्चों की फिक्र है, ना पत्नी की
फिर भी कहते फिरते हो कि चैन से नहीं जीते हो!!

क्या कहें .........
पत्निया ने ही सर आँख चढ़ा रक्खा है
वर्ना सच में नहीं जी पाते चैन से
जैसे नहीं जीने देते पत्नियों को चैन से
खुद भी उसी तरह बेचैन रहते
जैसे पत्निया तुम्हारे लिए रहती है
हर वक्त
न समय से भोजन पाते, न कोई ख्याल रखता
हर चीज तुम्हें तुम्हारे हाथ में ले आ प्यार से देता
और न तुम्हारे घर लौटने की राह देखता|

घर बाहर तुम्हारी लाठी बन तुम्हें
निकम्मा कर दिया है पत्नियों ने ही
पत्नियों के कारण ही सम्मान पाते हो
इहलोक और परलोक में भी
फिर भी उन्हीं को
सरेआम यूँ कह, बदनाम करते हो |

सविता की सुन लो यह आवाज
न यूँ समझो नारियों को
घर की सज्जा का सामान
वर्ना एक दिन पछताओंगे
जब नारी दुर्गा रूप धर
तुमसे लेने लगेगी इंतकाम |
+++ सविता मिश्रा +++

1 comment:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

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