Monday 22 October 2012

~दिल का घाव नासूर बना~

उफ़ अपने दिल की बात बतायें कैसे
दिल पर हुए आघात जतायें कैसे|

दिल का घाव नासूर बना
अब मरहम लगायें कैसे
कोई अपना बना बेगाना
दिल को अब यह समझायें कैसे|

कुछ गलतफहमी ऐसी बढ़ी
बढ़ते-बढ़ते बढती गयी
रिश्तें पर रज जमने सी लगी
दिल पर पड़ी रज को हटायें कैसे|

उनसे बात हुई तो सही पर
बात में खटास दिखती रही
लगा हमें ही गलत ठहरातें रहे
बातों ही बातों में खुन्नस दिखाते रहे
उनकी बातें लगी बुरी हमें पर
दिल पर अब पत्थर रख पायें कैसे|

पत्थर रख भी बात बढ़ायें हम
अपनापन भी खूब जातयें हम
दिल में टीस सी उठती रही
मन में लकीर पड़ती गयी
अब उस लकीर को हटायें कैसे
दर्दे दिल समझाता रहा खुद को
पर इस दर्द को मिटायें कैसे|

अपनों ने ही ना समझा हमें
गैरों की क्या शिकवा करें
सरेआम घमंडी साबित किया हमें
हर अवगुण को ही उसने देखा हममें
दुःख हुआ बहुत ही दिल को
फिर बताओं हम दिल को बहलाए कैसे||

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