Saturday 10 November 2012

# कंधे का सुकून #


तू कभी मेरे कंधे पर
सर रखा करता था,
आज हमें तेरे
कंधे की जरुरत पड़ी है।

नारी भी क्या अज़ब किरदार है
उसे कंधे की जरुरत पड़ती ही है,
इसलिए नहीं कि वह कमजोर है
बल्कि इस लिए कि
उसमें प्यार का भण्डार है
कितने भी कंधो पर सर रखे
परन्तु प्यार है कि
ख़त्म होता ही नहीं
बल्कि बढ़कर
दूना चौगुना हो जाता है।

कभी पिता के कंधे पर सर रख हुई बड़ी
पिता से अभूतपूर्व लगाव हुआ
फिर पति के कंधे पर सर रख जवानी बिताई
जीवन भर साथ निभाने की कसम खाई
अब बुढ़ापे में बेटे के कंधे पर
सर रख सुकून पाई
जिसको अपने कंधे का
देकर सहारा
खुद ही इस लायक बनाई |...सविता मिश्रा

2 comments:

Anonymous said...

Aachary Kashyap
**************
तू कभी मेरे कंधे पर सर रखा करताथा
आज हमें तेरे ही कंधे की जरुरत पड़ी
bahut hi sundar bhav.
Pahli hi line bahut kuchh kah dene ke liye kafi hai..

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

dhanyvaad achary bhaiya ...............