जमाना ठगा देखता रहा,
और हम धूँ-धूँ कर जल उठे|
आग के लपटों से घिरी,
उप्पर से लोहे कि तपिश |
अपने ही कपड़ो में सिकुड़े ,
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |
हो गयी गोधरा की पुनरावृत्ति,
फर्क बस इतना सा रहा,
वहाँ गद्दारों ने नफ़रत की चिता सजाई ,
परन्तु यहाँ अपनो ने ही की लापरवाही|
हुआ जो हादसा कि
इंसानियत उठी चीत्कार
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
चिता पर हमारी न जाने कितनों की,
सिंक गयी रोटियाँ ...
कहीं खुली रेल की पोल,
तो कहीं रेल मंत्रालय की|
राजनितिक पार्टिया तो
हो गयी बल्ले-बल्ले |
एक दूसरे की सभी
टांग खिंचते रह गये|
हमारी फिक्र किसी को कहाँ
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
समाचार-एजेंसिया समाचार,
पहले बताने की होड़ में लगी |
कवि कविता बनाने चल पड़े,
राजनीतिज्ञ कुर्सी डिगाने पिल पड़े |
हमारी है किसे खबर
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
चिता सजती है लकड़ी की
हमारी तो लोह सैया सज गयी |
सोये थे लेकर मीठे-मीठे सपने ,
खुली आखँ तो,
अपनी ही जलती चिता मिली|
दुनिया ठगी देखती रह गयी
और हम !
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |
कितनों ने की बचने की हाथा-पाई,
कर करुण-क्रंदन भगवान बुलायें |
परन्तु भगवान भी ना आ सका,
हम तुच्छ प्राणी जल गये|
दुनिया ठगी देखती रही
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
+++सविता मिश्रा +++16/5/2003
और हम धूँ-धूँ कर जल उठे|
आग के लपटों से घिरी,
उप्पर से लोहे कि तपिश |
अपने ही कपड़ो में सिकुड़े ,
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |
हो गयी गोधरा की पुनरावृत्ति,
फर्क बस इतना सा रहा,
वहाँ गद्दारों ने नफ़रत की चिता सजाई ,
परन्तु यहाँ अपनो ने ही की लापरवाही|
हुआ जो हादसा कि
इंसानियत उठी चीत्कार
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
चिता पर हमारी न जाने कितनों की,
सिंक गयी रोटियाँ ...
कहीं खुली रेल की पोल,
तो कहीं रेल मंत्रालय की|
राजनितिक पार्टिया तो
हो गयी बल्ले-बल्ले |
एक दूसरे की सभी
टांग खिंचते रह गये|
हमारी फिक्र किसी को कहाँ
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
समाचार-एजेंसिया समाचार,
पहले बताने की होड़ में लगी |
कवि कविता बनाने चल पड़े,
राजनीतिज्ञ कुर्सी डिगाने पिल पड़े |
हमारी है किसे खबर
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
चिता सजती है लकड़ी की
हमारी तो लोह सैया सज गयी |
सोये थे लेकर मीठे-मीठे सपने ,
खुली आखँ तो,
अपनी ही जलती चिता मिली|
दुनिया ठगी देखती रह गयी
और हम !
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |
कितनों ने की बचने की हाथा-पाई,
कर करुण-क्रंदन भगवान बुलायें |
परन्तु भगवान भी ना आ सका,
हम तुच्छ प्राणी जल गये|
दुनिया ठगी देखती रही
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
+++सविता मिश्रा +++16/5/2003
4 comments:
बहुत सुन्दर दिदी यह तो गोधरा की याद ताजा कर दिया आपने ........... जय श्री राम
........ के.के.पाण्डेय
dhanyvaad kishor bhai ............
AK,,,
जमाना ठगा देखता रहा,ओ़र हम धू-धू कर जल उठे| आग के लपटों से घिरी, उप्पर से लोहे कि तपिश |
अपने ही कपडों में सिकुड़े, हम धू-धू कर जल उठे |
bhut sundar
धन्यवाद ak भैया ....
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