Tuesday 20 November 2012

==जमाना ठगा देखता रहा==

जमाना ठगा देखता रहा,
और हम धूँ-धूँ कर जल उठे|
आग के लपटों से घिरी,
उप्पर से लोहे कि तपिश |
अपने ही कपड़ो में सिकुड़े ,
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |

हो गयी गोधरा की पुनरावृत्ति,
फर्क बस इतना सा रहा,
वहाँ गद्दारों ने नफ़रत की चिता सजाई ,
परन्तु यहाँ अपनो ने ही की लापरवाही|
हुआ जो हादसा कि
इंसानियत उठी चीत्कार
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |

चिता पर हमारी न जाने कितनों की,
सिंक गयी रोटियाँ ...
कहीं खुली रेल की पोल,
तो कहीं रेल मंत्रालय की|
राजनितिक पार्टिया तो
हो गयी बल्ले-बल्ले |
एक दूसरे की सभी
टांग खिंचते रह गये|
हमारी फिक्र किसी को कहाँ
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |

समाचार-एजेंसिया समाचार,
पहले बताने की होड़ में लगी |
कवि कविता बनाने चल पड़े,
राजनीतिज्ञ कुर्सी डिगाने पिल पड़े |
हमारी है किसे खबर
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |

चिता सजती है लकड़ी की
हमारी तो लोह सैया सज गयी |
सोये थे लेकर मीठे-मीठे सपने ,
खुली आखँ तो,
अपनी ही जलती चिता मिली|
दुनिया ठगी देखती रह गयी
और हम !
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |

कितनों ने की बचने की हाथा-पाई,
कर करुण-क्रंदन भगवान बुलायें |
परन्तु भगवान भी ना आ सका,
हम तुच्छ प्राणी जल गये|
दुनिया ठगी देखती रही
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
+++सविता मिश्रा +++16/5/2003

4 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर दिदी यह तो गोधरा की याद ताजा कर दिया आपने ........... जय श्री राम
........ के.के.पाण्डेय

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

dhanyvaad kishor bhai ............

Anonymous said...

AK,,,
जमाना ठगा देखता रहा,ओ़र हम धू-धू कर जल उठे| आग के लपटों से घिरी, उप्पर से लोहे कि तपिश |
अपने ही कपडों में सिकुड़े, हम धू-धू कर जल उठे |

bhut sundar

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

धन्यवाद ak भैया ....