Saturday 24 November 2012

मन की

१..उपाय
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ओंठो को सिल लिया है अब हमने
कि कहीं राज जख्मों का खोल ना दूँ
आँखो को अब कर लिया है सुनी हमने
कि कहीं गम के समुन्दर का ना दीदार हो
ठूंस ली हैं रुई अब हमने कानों में
कि कहीं किसी के व्यंग से ना आहत और हो
चेहरे पर अब हमने डाल दिए हैं परदे
कि कहीं सुरत से अपनी दर्द को न जाहिर कर दूँ |
++सविता मिश्रा ++
कटु शब्द
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स्नेह से लबरेज समझ कर आये थे
आपने ही कटु शब्द कह लौटा दिया
अपना समझ कर आये थे दर पे तेरे
बेगाना समझ तुने हमे भगा दिया ..सविता

4 comments:

Anonymous said...

Aachary Kashyap,,
बहुत सुन्दर रचना

Anonymous said...

bahut achhi kavita didi
.... KKPandey

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

dhanyvaad bhaiya

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

dhanyvaad kkp bhai ..........