आखिरी ख्वाइश
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आ जाओ ओ मेरे मनमोहन कृष्णा तू ,
आँख बिछायें राहों पर इन्तजार तेरा करती हूँ |
दुःख हर लो तुम हमारे सभी ,
तुझसे यही प्रार्थना मैं करती हूँ |
यह जानते हुए भी मैं तेरे ही दरश को तरसती हूँ |
मन में बसी है मूरत तेरी ,
आँखों में बसी है सूरत तेरी ,
फिर भी प्रभु देखो ना मूर्खता मेरी ,
बाहर भटक-भटक खोजू मूरत तेरी |
ओ मेरे गिरधर मैं तेरे ही यादों में ,
हर वक्त खोयी -खोयी सी रहती हूँ |
तू अपना दरश करा दे मन की आँखों से ही सही ,
तन-मन की आखिरी ख्वाइस दबी है दिल के कोने में कहीं
|| सविता मिश्रा |
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