Saturday 3 November 2012


              आखिरी ख्वाइश

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आ जाओ ओ मेरे मनमोहन कृष्णा तू ,

आँख बिछायें राहों पर इन्तजार तेरा करती हूँ |

दुःख हर लो तुम हमारे सभी ,

तुझसे यही प्रार्थना मैं करती हूँ |

ओ मेरे गिरधर तू मन में बसा है मेरे ,

यह जानते हुए भी मैं तेरे ही दरश को तरसती हूँ |

मन में बसी है मूरत तेरी ,

आँखों में बसी है सूरत तेरी ,

फिर भी प्रभु देखो ना मूर्खता मेरी ,

बाहर भटक-भटक खोजू मूरत तेरी |

ओ मेरे गिरधर मैं तेरे ही यादों में ,

हर वक्त खोयी -खोयी सी रहती हूँ |

तू अपना दरश करा दे मन की आँखों से ही सही ,

तन-मन की आखिरी ख्वाइस दबी है दिल के कोने में कहीं

|| सविता मिश्रा |

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