Sunday 23 December 2012

## कैसे हो सुखद जहाँ ##

आज मचा है हो हल्ला (शोरगुल )
अजीब सी शांति होगी कल
होते है रोज बलात्कार
जागती नहीं मगर सरकार ............
त्राहिमाम-त्राहिमाम का उठता शोर
बहस छिड़ जाती कानून है कमजोर
सुरक्षित होती इससे लड़कियां कहाँ
सख्त क़ानून बने, हो सुखद जहाँ......

मन करता .....

सरेआम चौराहों पर
फांसी नहीं जनता ही सज़ा दे............
लाडलो के माँ-बाप को भी सीख दो
कि छोटी गलती पर ही एक तमाचा खींच दो
सच्ची कहावत है भय बिन होय ना प्रीती
फिर देखो कैसे कोई गलती बड़ी होती
लड़कियों को जोश प्रबल दो
हाथ में आत्मरक्षा का हथियार दो
जुडो-कराटें और मार्शल-आर्ट की शिक्षा
स्कूलों में ये सब अनिवार्य कर दो..................

हद है .......
कन्या को देवी-माँ कह पूजते
और उसी को लहुलुहान यू करते
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
अब तो यह यत्र-तत्र भी नहीं है दीखता
पहले सुबह आरती उतारतें रात में थे लूटते
परन्तु अब तो ये आचरण भी पीछे कही छूटते
दिन दहाड़े देखो चीर हरण कर डालते
बचे रहने का भ्रम फिर भी है पालते...........

सुनो भारतीयों ....
कुछ तो बचाओ मर्यादा अपनी
सरेआम क्यों गिराते हो साख अपनी
माताओं बहनों पीड़ित लड़की की पीड़ा को समझो
ऐसे बहशी पति-पुत्र को निःसंकोच जहर दे दो
होगी सजा तुम्हें भले ही हो जाने दो
पर ऐसे जहरीले नागफनी को नेस्तानबुद कर दो|...
.सावित मिश्रा

Tuesday 18 December 2012

~ सम्मान ~

देश के सिपाही देश के रक्षार्थ करते रहे है बलिदान
और नेता ही देश के बार बार  रहे करते अपमान |
सम्मान करना सिख जायेगे जिस दिन देश का
नहीं है दम जो कर पाये कोई विदेशी अपमान |...सविता मिश्रा


डरते थे गद्दारों से कभी
अब अपनों से डरते है
यूँ ही आजादी का जश्न हम
हर वर्ष करते है |
||सविता मिश्रा ||.

जिद्दी मन



जिद थी अपनी कि
जिद छोड़ देंगे,
जिद्दी मन को अपने मोड़ देंगे|
पर यह हों
ना सका कभी ,
जिद से ही
"जिद" कर बैठी|
खुद को
बदलते-बदलते,

अपना ही
वजूद खो बैठी |
अब जिद है
कि "जिद"को,
अपने अंदर
कैद कर लूँ |
जिद से ही
"जिद"को
भूल जाऊ,
पर "जिद" है
जिद्दी बहुत ही
कैसे भुलाऊँ| |

||सविता मिश्रा ||

Sunday 16 December 2012

~~सपनों का क्या कसूर ~~


हवा का एक झोंका आया
मेरे सपने बिखर गये
फिर से उनको ढूँढ कर
जोड़ना मुश्किल हो रहा है।

मेरे सपने क्या थे
यह भी मुझे याद नहीं
मैं इस भीड़ भरी दुनिया में
उन्हें किधर खोजूं ?

हे ऊँचे महलों में रहने वालो
देखो हो सकता है कहीं
मेरे सपने उड़कर
आपके चरणों में दब कर
रह गये होंगे।
वे कहीं आपके महल के
एक कोने में सिसकियाँ
ले रहे होंगे।

मेरे सपने मुझे लौटा दो
इनका कोई कसूर नहीं
कसूर तो मेरा था
कि मैंने इतने ऊँचे
सपने देखे ही क्यों ?

आप मुझे मेरे सपने
लौटा दो
फिर कभी भी यह
भूल ना होंगी
मैं अपने सपने को
सपना ही बना रहने दूंगी।

उन्हें असलियत में बदल कर
मैं अपने सपनों का खून
फिर कभी नहीं करुँगी || सविता मिश्रा

. ||सविता मिश्रा|| ३/१२/८९

बेटी हो तो ऐसे क्यों -?





बेटी हो बेटे के पहले
नहीं भोजन किया करो|
उसके उठने से पहले उसके
चाय नाश्ते की   तैयारीं कर दिया करो |

चूल्हा चौका कर घर की
सफाई किया करो
तुम्हें  पुस्तक की क्या जरुरत
भईया को वो दिया करो |

पढ़ लिख कर लार्ड गवर्नर
नहीं बन जाओगी
चूल्हा चौका सीखोगी तो
अच्छा घर वर पाओगी|

काम पियारा होता है
चाम नहीं होता पियारा
पढ़ लिख कर भी
नहीं होगा तुम्हारा वारा -न्यारा |

घर के बाहर निकलोगी तो
आँखे चार गड़ जायेगी
मौका मिलते ही तुम्हें
वो नोंच घसोट जायेगी |

भईया से पहले ही
तेरा व्याह रचाऊँगी
वरना भाभी तुझें
तानें चार सुनाएगी |

काम धाम सब सींख जाओगी
तो काम वही आयेगीं
भोजन पकाना नहीं आया
तो सास दस बात सुनाएगी |

बेटी हो बेटे से ज्यादा बिनम्र हुआ करो,
क्रोध का त्याग कर लज्जा धारण किया करो |


   ++सविता मिश्रा ++

बस यूँ ही




कंटीली वादियों में फूल ढूढ़ रहे थे 

 नामुमकिन था मुमकिन कर रहे थे |

 सविता मिश्रा
दम्भ
=====
कांटे को फूल समझने की
भूल ना कीजिय ,
चूहे है आप अदना
शेर का दंभ ना भरा कीजिये| सविता मिश्रा

Wednesday 12 December 2012

फायकू
++++++


१-कहने को बहुत कुछ
कहूँ कैसे सब
तुम्हारें लिए

२-ख्याल आयें बस तुम्हारा
करे हम क्या
तुम्हारें लिए


३-जियें जाएँ हम बस
सह सुन के
तुम्हारें लिए

४-हमने स्वादिष्ट भोजन बनाया
मन लगा कर
तुम्हारें लिए

५-तुम्हारी पसंद का भोजन
देखो बनाया हमने
तुम्हारें लिए

६-टिका है हमारा भरोसा
तुमसे ही देखो
तुम्हारें लिए


७-आँखों में प्यार भरा
तुमने देखा क्या
तुम्हारें लिए

८-रात दिन गश्त करतें
सुख चैन को
तुम्हारें लिए

९-डरतें रहें फिर भी
अँधेरे में खड़े
तुम्हारें लिए

१०-कंपकंपाती रात पहरा दिए
फिर भी देखो
तुम्हारें लिए

११-मांग सिंदूर माथे बिंदी
गले मंगलसूत्र पहने
तुम्हारें लिए

१२-भर रक्खी थी पोटली
छुपातें फिर रहें
तुम्हारें लिए

१३-सब से छुप-छुपा
राजभोग हम लायें
तुम्हारें लिए

१४-अबैध पार्किंग को हटवायें
सड़क खाली करवाएं
तुम्हारें लिए

१५-तुम मेरे बन जाओं
प्यार जताएं बस
तुम्हारें लिए

१६-क्यों नहीं समझतें तुम
दिनभर यादों में
तुम्हारे लिए


१७-मायूस ना हो वतन
जान दे देगें
तुम्हारें लिए

१८-क्रोधित हो बरस पड़ी
कहा कोई जो
तुम्हारें लिए

१९-गंगा मैया पाप धूलो
सर झुकाएं हम
तुम्हारें लिए

२०-मैया तू जगत जननी
हम मस्तक झुकाएं
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

## फायकू ##

१-इरादा अपना बता तो
जिन्दगी छोड़ दे
तुम्हारें लिए..सविता

२-बेदर्दो की दुनिया में
दर्द लिए फिरतें
तुम्हारें लिए..सविता

३-तुम मेरे इंद्र हो
हम सूरज बने
तुम्हारें लिए

४-दूध फाटे दही बने
लस्सी की हमने
तुम्हारें लिए

५-वह बोले हमेशा कड़वा
शहद घोल बताएं
तुम्हारें लिए

६-सब के सब गिरगिट
रंग बदलते जाये
तुम्हारें लिए

७-राम नाम खूबय जपा
नहीं समझ आये
तुम्हारें लिए

८-बस एक दीपक से
अँधियारा मिटाने चले
तुम्हारें लिए

९-चोट तू खाया दर्द
हमको ही हुआ
तुम्हारें लिए

१०-गम के समुन्दर से
मोती चुने हम
तुम्हारें लिए

११-खेत खलिहान फैली हरयाली
यादों में तेरी
तुम्हारें लिए

१२-ठानते कैसे ना हम
सम्मान जुड़ा था
तुम्हारें लिए

१३-मुश्किल भले ही हो
रखना सम्मान था
तुम्हारें लिए

१४-जीतें थे कभी हम
मर भी जाये
तुम्हारें लिए

१५-जंगलराज मचा हाहाकार चौतरफा
हम करेंगे कुछ
तुम्हारें लिए

१६-आँखों में ख्वाब सजाएँ है
कोई अपना आयें
तुम्हारें लिए

१७-राहों पर फूल बिछा दे
घरौंदा प्यारा बसा
तुम्हारें लिए

१८- सूरज भले ही डूबा
हम नहीं डूबे
तुम्हारें लिए

१९-भागते शोहरत के पीछे
हम अडिग खड़े
तुम्हारे लिए

२० -बिछड़कर नहीं जिन्दा रहती
जिन्दा है हम
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

२१-मरू तो सुहागन मरू
चाहत है यही
तुम्हारें लिए

२२- राम राम कहते आई
मंदिर में बस
तुम्हारें लिए

२३-स्नान किया गंगा में
पापमुक्ति नहीं बस

तुम्हारें लिए

२४-आभार खेल क्यों खेलेगें
आभार देते हम
तुम्हारें लिए

२५-फायकु का नशा चढ़ा
हर कही दिखा
तुम्हारें लिए

२६-खोयी यादों में तेरी
आंसू बहाती बस
तुम्हारें लिए

२७-जग हँसा बस मैं रोई
ममता जागी बस
तुम्हारें लिए

२८-भैया की लाडली ठहरी
किया सब कुछ
तुम्हारे लिए

२९-पिता के आँखों का तारा
छोड़ा घर उनका
तुम्हारें लिए

३०-माँ के कलेजे का
टुकड़ा सब छोड़ा
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

Wednesday 5 December 2012

$$ गम की आंधिया $$

gam ki aandhiya ujaad na de..
chaman tera dhaal banke sadaiv..
tum khadi rehna..
pyaar se seechna sakhaye apni..
samay ke thapedo mei murjaane mat dena..savita mishra


गम की आंधिया उजाड़ ना दे चमन तेरा
ढाल बन के सदैव खड़ी रहना...
प्यार से सींचना शाखाएं अपनी

समय के थपेड़ो में
मुरझाने मत देना .....
सविता मिश्रा

Saturday 1 December 2012

यूँ ही

फूलों से बहुत प्यार था पर काँटों से डरतें थे
फूल की चाहत में दिल में कई नासूर पलते थे

नासूरों का क्या करेगें अब सोच कर भी डरतें है
अब तो डर के मारे फूलों को भी दूर से ही परखतें है
...सविता

अहम्
====
हम झुके ना थे किसी के आगे
आज झुके तो टूट गए,
टूट कर बिखरे ही थे कि
लोग पैरों से रौंद चल दिए |
सविता मिश्रा

++त्यौहार क्यों मनाते हो ++

त्यौहार तो अब हम क्या कैसे मनाये
सब दिन तो सूखी नमक रोटी खा
ये|

फिर किसी तरह त्यौहार के खातिर पैसा जुटा
ये
थैला ले जरा बाजार हो अपना थैला भर आये|

सोचे इतने में सब कुछ खरीद होगें खुशहाल
घर वालों के ख़ुशी से होगें सुर्ख गाल लाल |

दाम पूछते ही सामानों के हम बैठे मन मार
 भारी-भरकम 
दाम अंटी पैसे थे बस चार |

घूमते ही रहे धन मुताबिक ना मिला माल
तब समझे इस मंहगाई में हम तो हैं कंगाल|

बस एक-दो समान मूर्ति सहित घर ले आये
पूजा पर बैठ प्रभु को अपना दुखड़ा सुना
ये|

वह बोले इतने में हम क्या दे तुमको मूरख
तुम तो अच्छे हो जो नहीं पा रहे हो दुःख|

उनसे पूछो जो इस मंहगाई में भूखो रहते
त्यौहार को छोड़ो रोटी को भी हैं तरसते|

दो जून की जो भी सूखी-रुखी पाते हो
उसी में खुश रहो त्यौहार क्यों मनाते हो|...सविता मिश्रा