Sunday 10 February 2013

प्रकृति सौन्दर्य-



१-
सजी हुई है जैसे नवयौवना
मौसम बनता है इसका गहना
पुराने वस्त्र उतार गिराया
नव-नवीन वस्त्र धारण किया
नवीन ताम्र-पत्र की सुन्दरता
नवयौवना को और भी निखारता
नवीन वस्त्र एवं गहनों से सजी यौवना
हमें लुभाती है चीरकर पृथ्वी का सीना
वसंत ऋतु की यह मन मोहना
कोई और नहीं
वृक्ष है, यह किसी से न कहना||

२-
ओह कैसी ऋतु यह आई
बुढ़िया भी जैसे शरमाई
मौसमी हवा के तेज झोंको से
झड़ गए पत्ते हर नोंको से
बादलों की ओर निहारती
अपनी हालत पर लजाती
सौन्दर्य की थी जो बाला
लगती है अब मेरे अब्बू की खाला
हुई कैसी यह दुर्दशा तेरी
वृक्ष है वह
हालत हुई है जिसकी ऐसी |

३-
निचाट हो गया था जो उपवन
लो फिर आ गया झूम के सावन
कोमल पत्तियाँ किलकारने लगीं
गहनों से फिर स्वयं को संवारने लगीं
पूर्ण यौवन को फिर वह पाने लगीं
घुमड़ घुमड़कर फिर बदली छाने लगीं |
आश्चर्य में तुम न रहना
सदाबहार मौसम है उपवन का गहना
इस ऋतु में वृक्षों का
क्या कहना, क्या कहना |

४-
जैसे-जैसे बरसता जाता है सावन
निखरता जाता सौन्दर्य मनभावन
दिल में रखकर धैर्य
देखते ही बनता है प्रकृति सौन्दर्य
अग्नि में तपकर चमकता है जैसे सोना
वैसे ही सुन्दर लगता है उपवन का हर कोना
हर मौसम के झंझावतो को सहता
धरा के सौन्दर्य को है बढ़ाता
वृक्षों का अहसान न भूलना
सहेज अगली पीढ़ी को तुम देना |

प्रकृति सौन्दर्य को तुम भी प्रेम से अपने गले लगाते
जीवन में जो एक वृक्ष अपने कर कमलो से उगाते ||...सविता मिश्रा

1 comment:

babanpandey said...

सुंदर उदगार ,,..