Thursday 14 February 2013

+++अभिलाषा +++

उफ़ धरती का सीना क्यों ना फट गया
माँ के लाल जब माँ की गोद में सोने को गया|
दिल हो गया जख्मी कोई अपना ही कर गयी
लकड़ियाँ सुखी जली तो चीख यही कह गयी|
चिता कई जली सब सुलग सुलग सी रही
गंगा के जल से पवित्र हो सुकून जो पा गयी|
माँ ने ही जन्म दिया पालपोष किया था बड़ा
माँ ने ही हमें अपने गोद में छुपा उपकार किया बड़ा|
याद कर करके भले रोयें हमे हमारे परिजन
पर हम तो मुक्त हो गए इस संसार से माँ के करके दर्शन|
बहुत थी अभिलाषा कि गंगा स्नान कर स्वर्ग सीधे सिधारेगें
वह तमन्ना भी माँ ने बहुत ही जल्दी कर दी पूरी अब ना कराहेगें |
..सविता मिश्रा

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