Tuesday 8 October 2013

~प्यार का सागर भर जाऊँगी~(मैं बेटी हूँ)


मैं बेटी हूँ ...
जरुरत पडने पर हमारी,
हमको ही याद करती हो,
नव रात्र का उद्दयापन करने,
हमें ही घर घर ढूढवाती हो |

इतना परेशान होती हो मैया
पर अपने घर में नहीं लाती हो|
पैदा होते ही हमको,
दूध में डूबा मरवा देती हो,
या जिन्दा ही मिट्टी में गड़वा देती हो |

मैया तुम ही सोचो ,
तुम भी तो बेटी थी,
नानी जी ने मारा होता तुम्हें तो ,
तुम हमें क्या इस तरह मार पाती |
तुम बेटी होकर भी क्यों ,
बेटी को मारती जाती हो |

हममें भी जीवन को जीने की अभिलाषा है,
मैया यूँ ना खत्म करो हमें, तुमसे ही तो आशा है|
जैसे प्यार से तुने दो कुल सवाँरे है ,
मुझे भी वह करने का मौका दो |

मैं मान हूँ , सम्मान हूँ तेरा,
तु माने तो अभिमान हूँ तेरा |
मैया मुझे तुम जब दुनिया में आने दोगीं ,
जरुरत पर यूँ घर- घर डोल कन्या नहीं ढूढोगीं|

हर घर में मैं भी किलकारी मारते दिख जाऊँगी,
सबके ह्रदय में प्यार का सागर भर जाऊँगी || सविता मिश्रा

1 comment:

संतोष पाण्डेय said...

कभी ऐसा ही वक़्त था। आज बेटियां बेटों से पीछे नहीं हैं . तमाम वर्जनाओं और बंदिशों के बावजूद।