Thursday 7 November 2013

++ओह क्या क्या समझ बैठे ++

मानी थे लोग अभिमानी समझ बैठे
क्रोधी ना थे लोग क्रोधी कह बैठे
दयालु थे बहुत लोग फायदा उठा बैठे
भावुक थे हम लोग हमको ही छल बैठे
ताकतवर तो अधिक ना थे
पर लोग कमजोर समझ बैठे
कोयल तो ना थे पर लोग
 कौवा समझ बैठे
थोड़ा ही सही सभ्य थे हम
लोग असभ्यता का मोहर लगा बैठे
सहज रहते थे अक्सर
लोग कष्ट दे असहजता दे बैठे
दिल में प्यार था बहुत पर
लोग नफरत कह बैठे
बुद्धिमान ना थे अधिक पर
लोग बुद्धिहीन समझ बैठे
धोखा कभी ना दिए किसी को
लोग फिर भी धोखे बाज कह बैठे
बहानेबाज ना थे कभी भी
लोग वह भी हमको कह बैठे
सपने में भी बुरा ना सोचे किसी का
लोग है की हम पर ही शक कर बैठे
 हमेशा बोलते थे सच्चाई से
लोग झूठा साबित कर बैठे
त्यागी थे निस्वार्थ भाव से
लोग सन्यासी समझने की भूल कर बैठे
बदल जाये हम यह फितरत ना थी
लोग हमे गिरगिट  (बदला हुआ )समझ बैठे
हम जो-जो ना थे लोग खुद से
अपने मन में  समझ वह भी कह बैठे
क्या करे कैसे समझाएं
समझा-समझा थक हारकर बैठे||...सविता मिश्रा

4 comments:

Anonymous said...

bahut khoob bebaak likha

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... जो जान के समझ बैठे हैं उनको तो सम्ज्खाना बहुत ही मुश्किल होगा ... समझदार कुछ समय में समझ जाता है ... भाव पूर्ण ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

धन्यवाद आपका

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

दिगम्बर भैया बहुत बहुत शुक्रिया