Tuesday 24 December 2013

देखो न-

आसमान में उड़ते रहते हो
जरा जमीं में उतर के देखो न !


चश्मा पहनकर देखते हो दुनिया
जरा चश्मा उतारकर देखो न !

स्वार्थ के लिए करते हो सब कुछ
जरा तुम निःस्वार्थ बनकर देखो न !

घर को तो अपने सजाते-संवारते ही हो
अपने देश को जरा संवारकर देखो न !

जग में प्यारी-न्यारी है अपनी यह संस्कृति
जरा उस संस्कृति को अपना के देखो न !

विरला ही होगा फिर तुम-सा दुनिया में
खुद की नजरों में खुद को ही उठा के देखो न !! सविता मिश्रा 'अक्षजा'

4 comments:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... आत्मसम्मान के लिए खुद की नज़रों में उपत उठना जरूरी है ...

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

धन्यवाद दिगंबर भैया :)
नमस्ते आपको आप इतने व्यस्त होते हुए भी हमारी हर पोस्ट पर आते हैं सच में हम आभारी हैं आपके ..ज्यादा गलत हो तो मार्गदर्शन भी कीजिये आपका सदा स्वागत रहेगा ..कुछ गलत नहीं बोले क्युकी वह तो होगा ही क्योकि बस ऐसे ही कलम चला लेते हैं अपनी संतुष्टि के लिए :) :)

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

@सुशिल भैया नमस्ते ...दिल से आभार आपका जो आपने पढ़ा और कमेन्ट दिया