१..मिट्टी घट थे
निखारा होता गर
आसमा छूते |
२..कृतज्ञ बनें
मानो तो मात-पिता
गुरु से बड़े |
३...गुस्सा काहे का
उपजा दूजे सुख
मन का भ्रम |
४.... दर्द बदले
गुलदस्ता प्यार का
दुआ के साथ |
५...दर्द अपार
अपना दूर कहीं
इच्छा मिलन |
६...सामंजस्य से
चले जीवन पथ
बने जीवन |
७...गप्प-मार ही
समाज सुधारक
बने विकट |
८..दोषी औरत
ठहराते आदमी
कमी छुपाते |
९..तगड़ी धूप
सहना नियती है
नारी जीवन |
१०..धूप प्रखर
निखरता जीवन
साँझ पहर |..सविता मिश्रा 'अक्षजा'
निखारा होता गर
आसमा छूते |
२..कृतज्ञ बनें
मानो तो मात-पिता
गुरु से बड़े |
३...गुस्सा काहे का
उपजा दूजे सुख
मन का भ्रम |
४.... दर्द बदले
गुलदस्ता प्यार का
दुआ के साथ |
५...दर्द अपार
अपना दूर कहीं
इच्छा मिलन |
६...सामंजस्य से
चले जीवन पथ
बने जीवन |
७...गप्प-मार ही
समाज सुधारक
बने विकट |
८..दोषी औरत
ठहराते आदमी
कमी छुपाते |
९..तगड़ी धूप
सहना नियती है
नारी जीवन |
१०..धूप प्रखर
निखरता जीवन
साँझ पहर |..सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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