Sunday 20 July 2014

सठिया गयी हो -

शहर के बीचोबीच खूब बड़ा पार्क था | आसपास की बिल्डिंगों से ही नहीं बल्कि थोड़ी दूरी पर रहने वाले लोग भी पार्क की सुन्दरता के कारण सुबह-शाम खींचे हुए चले आते थे | शहर वासियों के लिए वह पार्क आकर्षण का केंद्र था | हर तरह के फूल के पौधे मौजूद थे पार्क में | बेला, चमेली और रात रानी के पौधे बहुतायत में थे | उनकी तीखी महक बड़ा सुकून देती थी | नीम के पेड़ की खुशबू बरसात में तो बड़ी सुहावन लगती थी | कई फलदार पेड़ भी थे जिनके नीचे बड़े-बड़े चबूतरे बने थे | प्रतिदिन ही बड़े-बुजुर्ग वहां पर बैठकर मजमा लगाते थे | कई बुजुर्ग बरगद के पेड़ के नीचे योगाभ्यास करते भी दिख जाते थे | रामप्रसाद को तो सबसे प्रिय था ठठाकर हँसने वाला अभ्यास | जीवन का सारा दर्द भूलकर चंद पल वह दिल खोलकर हँसते, यह बात और थी कि कभी-कभी आँखों की कोर पनीली हो जाती थीं |
रामप्रसाद भी अपनी पत्नी संगीता के साथ कभी-कभार आ जाते थे | दोनों बेटे विदेश में जा बसे थे | अब इस शहर में रामप्रसाद और संगीता ही एक दूजे के सुख-दुःख के साथी थे | रामप्रसाद को इस पार्क में आकर बैठना बहुत ही ज्यादा पसंद था | वो जब भी आते दो-चार घंटे पार्क में ही बिता देते थे | संगीता को पार्क में टहलने से ज्यादा अड़ोस-पड़ोस के घरों में जाकर बैठकी करना पसंद था | आज रामप्रसाद जिद करके संगीता को लेकर पार्क में आये थे | आकार एक किनारे पड़ी बेंच पर बैठ गए थे |
वहां पार्क में कई नवजोड़ो को देख न जाने रामप्रसाद को क्या सूझी | अपनी जीवन संगनी के हाथों को अपने हाथ में लेकर बोले, " याद है ना ऐसे पहली बार तुम्हारें हाथो को कब हमने अपने हाथ में लिया था |" संगीता सुनकर मुस्करा दी बस | क्योंकि उसका सारा ध्यान तो पार्क में एक तीन साल के बच्चे के साथ टहलती हुई गर्भवती युवती की ओर था | उसे देख उसके मन में अजीब-अजीब ख्याल आ रहे थे|
वह सोच रही थी यह युवती तो 'पूरे दिन' से है ,यहाँ अकेले कैसे टहल रही है, वह भी तीन साल के नन्हे बच्चे के साथ, जरुर पति ने छोड़ दिया होगा | तभी तो इस हालत में भी वो, यहाँ अकेले टहल रही है | सास-ससुर को तो आज की जनरेशन बोझ मानती है, भेज दिया होगा उन्हें वृद्धाश्रम |
न जाने क्या हो गया है आज की जनरेशन को | सास होती तो इसको ऐसी हालत में अकेले थोड़ी टहलने भेजती | खुद साथ रहकर बच्चे के साथ बहू का भी इस अवस्था में ध्यान रखती | होगी यह खूब नकचढ़ी बहू। तभी तो अब देखो कोई नहीं है इसके साथ | यह भी हो सकता है यह अकेले रहती हो | आजकल तो बहुएँ आते ही एक नया अलग घरोंदा बसा लेती हैं | हो सकता है लड़ बैठी हो अपने पति से | आज की लड़किया सहना कहाँ सीखी है | हर बात में तो पुरुषों को जवाब देने लगती हैं | नहीं सहा होगा इसके मर्द ने | इस हाल में छोड़ जाने का मतलब ही है कि लड़की लड़ाकू किस्म की है | एक बात भी सहती नहीं होगी |
हमारा जमाना था कितना कुछ सहते थे, उफ़ तक ना करते थे कभी | तभी तो आज तक एक साथ हैं हम दोनों | आखिर धीमी आँच पर ही तो खीर स्वादिष्ट पकती है। आज की पीढ़ी तो जिंदगी को भी इंस्टेंट नूडल्स-सी समझ बैठी है।
ठंडी हवा का झोंका आया तो फूलों की सुगंध से मुग्ध सी हो गई संगीता | हवा में फूलों की ताजगी उसके दिमाग को भी ताज़ा कर गयी थी | आँखों को भी हवा में मौजूद शीतलता ने शीतल कर दिया था |
एक बारगी वह खुद से खुद को ही झकझोरती हुई बोली, 'अरे नहीं- नहीं मैं गलत क्यों सोच रही हूँ | मैं भी तो जब ये आँफिस से देर से आते थे तो अकेले पार्क में टहलती थी रिंकू जब पेट में था| डॉक्टर की शख्त हिदायत थी कि रोज टहला किया करिए | पार्क में ही तो मेरा दर्द शुरू हो गया था| जिसके कारण किसी ऐसी ही बेंच पर बैठी किसी बुजुर्ग महिला ने मेरी मदद की थी | इन्हें भी उन्होंने ही तो फोन करके बुलाया था, मेरे से नम्बर लेकर| अपना वह दिन इतनी जल्दी भूल गयी | सच कहते है ये, मैं 'सठिया' गयी हूँ' सोचकर मुस्करा उठी |
शादी के एक साल के अंदर ही इनकी नौकरी शहर से बाहर लग गयी थी | सास ने जबरजस्ती मुझे भी इनके साथ भेज दिया था | यह कहकर कि मेरे बबुआ को भोजन कौन बनाकर देगा | थक हार कर आएगा तो क्या भोजन खुद बनाएगा | इनके बहुत मना करने के बावजूद 'बहू तैयार हो जा बबुआ संग जाने को' उन्होंने सख्ती से आदेश पारित कर दिया था | पुराने दिन याद आते ही चेहरे पर मुस्कान अनायास ही टहल गयी |
उसे हँसता हुआ देख राम प्रसाद ने बोला - " मन ही मन क्या सोचकर खिलखिला रही हो।" संगीता के अनसुना कर देने पर, " ये बुढ़िया! कहाँ खोयी है ?" पर बुढ़िया तो पास होकर भी पास कहाँ थी । वह तो दूर कछूआ गति से टहलती युवती में खुद को देखती हुई अपने खट्टे मीट्ठे दिनों में खो गयी थी|
युवती अब भी धीरे-धीरे चक्कर लगाती हुई संगीता के सामने से होकर आगे बढ़ गयी थी | थोड़ी ही दूरी पर उसका बेटा तिपहिए साईकिल से उसके पीछे-पीछे चल रहा था | अचानक किसी पत्थर से टकरा कर तिपहिये से गिर गया वह। गिरते ही बड़े तेज स्वर में रोने लगा | रोने का स्वर जैसे ही संगीता के कानों में पड़ा वह वर्तमान में वापस लौट आई |
दौड़ कर बच्चे को उठाकर चुप कराने लगी | युवती जल्दी दौड़ सकती नहीं थी वह जब तक पास आई उसका बेटा संगीता की गोद में मुस्करा रहा था | संगीता ने लाड लड़ाकर बच्चे को बहला लिया था | युवती नजदीक पहुँचकर धन्यवाद आंटी कह मुस्करा दी |
जब तक एक दूजे से जानपहचान कर रहे थे कि युवती संध्या का पति राकेश आ गया | हँसते हुए बोला- "डार्लिंग माफ़ कर दो, आज देर हो गयी | वह बात ऐसी थी कि बॉस ने कुछ काम दे दिया था | और सख्त हिदायत दी कि इसको निपटाए बिना घर मत जाईएगा | क्या कर सकता था तुम तो जानती ही हो, बॉस की तो सुननी ही पड़ती है |"
संगीता ने कनखियों से स्त्री को देखा उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं। चबूतरे पर चिंटू को गोद में बैठा खिला रही थीं लेकिन आँख- कान युवती की तरफ घूमे हुए सतर्क अवस्था में थे।
"घर पहुँचा तो माँ चिल्ला पड़ी कि बहू अकेले गयी है पार्क ! जा, जाकर उसे ले आ ! मेरे तो घुटने पकड़े थे अतः गयी नहीं साथ, जल्दी भाग के जा |" युवती के पति द्वारा दी गयी सफाई संगीता के कानों को भी साफ करती जा रही थी।
संध्या मुस्कराते हुए बोली "कोई बात नहीं स्वीटहार्ट |"
चिंटू अब भी संगीता के गोद में बैठा था। पास जाकर संध्या बोली, "इनसे मिलो, ये संगीता आंटी हैं, इन्होंने चिंटू को सम्भाला, वरना शायद वह आज चोटिल हो जाता।"
राकेश नमस्ते आंटी कहकर अपने बेटे चिंटू को गोद में ले लिया | फिर संध्या का हाथ पकड़ बतियाते हुए अपने घर की ओर चल दिया |
संगीता के आँखो ने तब तक उस युवती का पीछा किया जब तक कानों में युगल की खिलखिलाने की घण्टिया बजती रही। फिर अपने बुढ़ऊ को अपनी सोच बता-बताकर खूब हँसी |
बुढ़ऊ हमेशा की तरह हँसते हुए बोले, "तुम न सच में सठिया गयी हो |" कहकर दोनों ही ठहाके लगाने लग पड़े |
बुढ़िया हँसते-खेलते युगल को दूर जाते देख बोली, " सच में 'सठिया गयी हूँ' मैं |" अन्धेरा होने चला था अतः दोनों बूढ़ा-बुढ़िया भी एक दूजे का सहारा बन घर की ओर चल पड़े, अपने खट्टे मीट्ठे अनुभव एक दूजे से बाँटते हुए |
सविता मिश्रा "अक्षजा"
20 July 2014 नया लेखन ग्रुप में चित्र पर

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

ऐसे ही अनुभव बांटते चलें तो जीवन आसान हो जाता है ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

digmabr bhaiya _/\_ aabhar aapka