Friday 15 August 2014

पेट की मज़बूरी


एक बूढ़े बाबा हाथ में झंडा लिए बढ़े ही जा रहे थे, कईयों ने टोका क्योकि चीफ मिनिस्टर का मंच सजा था, ऐसे कोई ऐरा गैरा कैसे उनके मंच पर जा सकता था| बब्बू आगे बढ़ के बोला "बाबा आप मंच पर मत जाइये, यहाँ बैठिये आप के लिय यही कुर्सी डाल देतें है|" "बाबा सुनिए तो" पर बाबा कहाँ रुकने वाले थे|

जैसे ही 'आयोजक' की नजर पड़ी, लगा दिए बाबा को दो डंडे, "बूढ़े समझाया जा रहा पर तेरे समझ नहीं आ रहा" आंख में आंसू भर बाबा बोले "हा बेटा आजादी के लिय लड़ने से पहले समझना चाहिए था हमें कि हमारी ऐसी कद्र होगी|"
"बहु बेटा चिल्लाते रहते हैं कि बुड्ढा कागजो में मर गया २५ साल से ...पर हमारे लिये बोझ बना बैठा है|" तो आज निकल आया पोते के हाथ से यह झंडा लेकर..., कभी यही झंडा बड़े शान से ले चलता था, पर आज मायूस हूँ जिन्दा जो नहीं हूँ  ....|" आँखों से झर झर आंसू बहते देख आसपास के सारे लोगों के ऑंखें नम हो गयी|
बब्बू ने सोचा जो आजादी के 
लिये लड़ा, कष्ट झेला वह .....,और जिसने कुछ नहीं किया देश के लिय वह मलाई ....,छीअ! "पेट की मज़बूरी है बाबा वरना ...|" बब्बू रुंधे गले से बोल चुप हो गया| ..सविता मिश्रा

2 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

मार्मिक कहानी
विजेता होने पर बहुत बहुत बधाई

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

विभा दीदी सादर आभार आपका दिल से