Wednesday 10 September 2014

पिछलग्गू(लघु कहानी)

पिछलग्गू
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सुरेश, किशोर के पीछे-पीछे लगा रहता था, वह कुछ भी बोलते, उनको दाद देता कि "वाह सर क्या बात कहीं आपने" वह उसके सीनियर जो थे| सभी आफिस वाले उसके इस हद से ज्यादा की चमचागिरी से परेशान थे| कानाफूंसी करते की काम धाम तो कुछ करता नहीं बस चमचागिरी में लगा रहता है| उसे देखते ही खिल्ली उड़ाते अरे देखो-देखो आ गया चिपकू| यह बात किशोर के कानो तक भी पहुंची| उन्हें कुछ सुझा-एक दिन एक साधारण सा कपड़ा पहने सर पर तौलिया लपेटे कुछ काम लेकर पहुँच गये! चपरासी देखते ही पहचान गया, पर किशोर ने इशारे से चुप रहने को कह दिया|
 सुरेश के पास पहुंचे तो कागज हाथ में आते ही सुरेश उन्हें पाठ पढ़ाने लगा "नहीं ऐसा नहीं ऐसा है, आप छोड़ जाइये मैं देख लूँगा!"उसके चेहरे की ओर भी ना देखा|
चपरासी ने कहा ..."सर वह सही तो बोल रहे थे, आपने उन्हें देखा भी नहीं और ना उनके कागज देखे, लौटा दिया |"
"अरे राम भरोसी यह "बाल" धूप में नहीं सफेद किये मैंने, बस कपड़े से समझ गया कैसा व्यक्ति है, दौड़ने दो कुछ दिन|" सुरेश बड़े तीसमारखा की तरह बोला|

तभी सूट-बूट में किशोर आ गया और उसी काम को करने को बोला जो वह साधारण सा कपड़ा वाला व्यक्ति दे गया था .. सुरेश ने झट से कागज निकाले और मुहं लटकाए केविन में जाते ही, "सौरी सर गलती हो गयी, आइन्दा से कभी ना होगी|" बाहर निकलते हुए चपरासी को मुस्कराता देख सुरेश उप्पर से नीचे तक जलभुन उठा| सविता मिश्रा १०/८