Monday 3 November 2014

*इच्छा-शक्ति*

आंसू चीख-चीख कह रहे थे कि जो हुआ उसके साथ वह बहुत गलत हुआ| पर जुबान थी कि ताला जड़ चुका था|
दीपावली के विहान खुशियों का लेखा-जोखा करते, पर अब गम की नदी में गोते लगा रहे थे| हंसता-खेलता परिवार आज गमजदा हो गया था| रह-रह हर बात को लघुकथा में ढ़ालने वाला शख्स आज आँखे मूदें पड़ा था|

ना जाने कितनी लघुकथायें उसके अवचेतन मन में दफ़न हो रही थी| वह बोलना चाहता था कि मैं लिखूंगा जब उठाऊंगा कलम, खूब ढेर सारी घटनाओं पर लिखूंगा| मैं जो यह यमराज से लड़ रहा हूँ ना, वह भी लिखूंगा देखना तुम| पर पत्नी थी कि दुःख के सागर में डूबी, उसके दिलोदिमाग को नहीं पढ़ पा रही थी|
बस कलम उठने ही वाली हैं, आखिर हजारों दुआओं में अमृत-सा असर जो हैं| सविता मिश्रा Savita Mishra

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

नाम तो चाहता है लड़ना ... उठ जाना ... और यही शक्ति उसे उठाएगी भी ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

शुक्रिया भैया
सादर नमस्ते