"पलटी"
"का हो लल्लन, कैसन चलतबा तोहार नेतागिरी |"
(क्या हो लल्लन, कैसी चल रही है तुम्हारी नेतागिरी)
"का
बताई भईया, इ जब से मोदी आईगा बा न, रच्चिव क रहाईस नाही बा | भागमभाग बा
बिल्कुलय, दिन- रात एक करा, पर एक्कव कौड़ी हाथे नाही लागत| और-ता-और केऊ
पहिचनबव नाही करत अब| "
(क्या बताये भैया, ये जब से मोदी
आयें हैं, थोडा भी आराम नहीं मिल रहा| भागमभाग हमेशा| दिन रात एक करना पड़
रहा, परन्तु एक भी पैसा हाथ नहीं लग रहा| और छोड़िये, कोई पहचान भी न रहा
अब|)
"अरे काहे ?" (अरे क्यों ?)
"का
बताई, मोदी के पच्छ में, इ न्यूजवा वाले दौड़ लगावत रहथिन न | गवां रहे एक
ठनी के दुआरे वोट मांगय, ससुर का नाती कहेस 'के हए तू, हम ता कमल के देब |
खबरवा में देखा हम उ मोदी देश के सुधारी दें, ता तोहके दई का आपन वोट ख़राब
काहे करी' | आपन अस मोह लेई क रही गये|"
( "क्या बताये,
मोदी के पक्ष में, ये न्यूजचैनेल वाले दौड़ लगाते रहते हैं| एक के घर गए थे
वोट मांगने, ससुर का नाती कहा कि "कौन हो तुम? हम तो कमल को देंगे वोट|
समाचार में देखा हमने, वह मोदी देश को सुधार देगा| तो फिर तुमको देकर वोट
ख़राब काहे करें|
अपना सा मुहँ लेके रह गए हम|")
" 'अरे इसन कहेस उ' वइसे लल्लन इ त सही कहेय तू | चमच बनय , और तलवा चाटय के दौड़ में त आजकल न्यूजवा वाले चितवव से भी तेज हयेन |"
(अरे
ऐसा कहा उसने, वैसे लल्लन यह तो सही कहा तुमने| चमचा बनने और तलवा चाटने
की दौड़ में आजकल न्यूज वाले चीता से भी तेज दौड़ रहें हैं|" )
"हा
भईया गिद्ध नज़र गड़ाये रहथिन ससुरे, हमरे पचन पर| मौका पउतय, मारी देथिन
झपट्टा , उघाड़ी देथिन सब हमार छुपा-मुदा| अइसय हाल रहा त हमार नेतागिरी त
खतमय समझअ |"
(हां भैया, गिद्ध नज़र गड़ाये रहते है ससुरे,
हम सब पर| मौका मिलते ही मार देते है छापा, खोल देतें हैं सब अपना
छुपा-मुदा हुआ| ऐसा हाल रहा तो हमारी तो नेतागिरी ख़त्म ही समझिये आप|" )_
"ता आगे अब का सोचय|"
(" तो आगे के लिए अब क्या सोचा हैं ?)
"भईया, का बताई , सोचत हई मारी जाई 'पलटी' ...पंजा छोड़ी पकड़ी लेई कमल |"
("भैया क्या बताये, सोच रहें है पार्टी बदल ही डाले|" ) सविता मिश्रा