Sunday 22 February 2015

~~धूर्तता ~~~

दोनों ही आम रास्ते से होकर ख़ास की कुर्सी पर आमने-सामने बैठे थे |अपने अपने तरीके से खूब उल्लू बनाये भीड़ को |
एक कहता तो दूजा हा में हा मिला हंस पड़ता |
पहला नेता - "भीड़ के न आँख होते है न कान और न अपना दिमाग | जो समझाओ समझती है ,जो सुनाओ सुनती है और जो दिखाओ वही देखती है |"
दूसरा नेता - "सही कह रहें हैं आप | भीड़ होती ही है मुर्ख |आपने हिंदुत्व का नारा सुनाया सबके विकास का रास्ता दिखाया ,दिमाग में ब्लैक मनी को लौटा लाने के साथ सबमें बाँट देने को कह उल्लू बनाया | तो मैंने भी- फ्री वाई-फाई , बिजली का सब्जबाग दिखाया और दिमाग में भीड़ के ऐसा घुसाया की देखिये एक बार मैंदान छोड़ भाग जाने के बावजूद आपके सामने बैठा हूँ |" दोनों ही अपनी अपनी नीतिया बता , ठहाका मारते नजर आये |
गेट पर खड़ा दरबान सब सुन ठगा महसूस कर रहा था पर वह ना अपनी बेबसी पर मुस्करा सकता था और ना नेताओं की धूर्तता पर क्रोध जता सकता था |
मुलाकात ख़त्म हो चुकी थी पर दरबान की आँखों में लालिमा जम गयी थी | ...सविता मिश्रा

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