Saturday 28 February 2015

"गुलाब की कली "

"अम्मा जी आपने तो पालपोस बड़ा किया है |ऐसा अनर्थ मत करिये |" रूढ़ियो की बलि चढ़ने जा रही मन्नो हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रही थी अपनी मृत दीदी की सास के सामने |
"जीजा जी आप कुछ कहिये | मेरे माँ- बाप तो है नहीं | जो है आप सब ही है मेरे लिय | ऐसा ना कीजिये मेरे साथ |"
" तुम्हारी दीदी के मौत के बाद उसकी जगह तुम्हें बच्चों की माँ बनना ही होगा |यहीं सदियों से परम्परा रही है हमारे समाज की |" माँ हाथ पकड़ बैठा ली भगवान की कथा में |
अब असहाय सी निमग्न हो भगवान् के सामने आँखे बंद किये दया की भीख मांगती रही मन्नो |
" दादी, लीजिये "गुलाब के फूल" भगवान को चढ़ाने के लिय |"
"अरे मूरख कलियाँ क्यों तोड़ लाया | बाजार से ले आता दौड़ के |"
" दादी , एक कली को बाबा भी ..| मैंने तो एक तोड़ी दूजी आ जायेगी कल तक, पर यह कली तो ...| "
"बहुत बोलने लगा है |" दादी गुस्सा होते हुए बोली
"माँ लाड लड़ाते हुए मौसी को "गुलाब की कली " ही तो कहती थी |"
बेटे की बात सुन पिता को झटका सा लगा | धीरे-धीरे अपनी शादी की पगड़ी उन्होंने सर से उतार दी |
"अरे ये क्या कर रही हैं 'मन्नो मौसी' |"
" 'देवता' को प्रणाम कर रही हूँ |"
"अरे मैं .."
"मेरे लिए तो देवता ही हो | एक कली को भले पौध से अलग कर दिया पर दूसरी कली को मुरझाने से तुमने बचा लिया |" सविता मिश्रा


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