Wednesday 8 April 2015

सिंदूर की लाज


पति की बाहों में परायी औरत को झूलते देख स्तब्ध रह गयी । आँखों से समुन्दर बह निकला ।
दूसरे दिन सिंदूर मांग में भरते समय अतीत में दस्तक देने पहुँच गयी।
"माँ, ये सिंदूर मांग और माथे पर लगाने के बाद गले पर क्यों लगाती हो । "
माँ रोज रोज के मासूम सवाल से खीझ कह बैठी थी-" सौत के लिये ।"
आज आंसू ढुलकाते हुये वह भी गले पर सिंदूर का टिका लगा लीं ।।
बगल बैठी उसकी दस साल की मासूम बेटी ने वही सवाल किया जो कभी उसने अपनी माँ से किया था ।
माँ मुस्कराते हुये बोली- "माँ दुर्गा से शक्ति मांग रही हूँ , जैसे सिंदूर की लाज रख सकूँ । " सविता 

5 comments:

Unknown said...

वाह्ह .....सुन्दर रचना।

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-4-15 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1943 में दिया जाएगा
धन्यवाद

रश्मि शर्मा said...

बढ़ि‍या लि‍खा..

Sudheer Maurya 'Sudheer' said...

लाजवाब

विवेक दुबे"निश्चल" said...

वाह