Monday 8 June 2015

~~नाकाम साज़िश ~~

"तुम अब तक स्कूल तक में कुछ भी नहीं की हो; अब कैसे स्कूल से बाहर डिबेट कम्पटीशन में जाने की बात कर रही हो | नाम डुबो के आओगी स्कूल का । " नाम फाइनल करते समय टीचर ने हिमा पर क्रोध करते हुए कहा ।
"सर, मौका मिला ही नहीं ,और न पूछा गया कभी क्लास में । अभी तक वही जा रहें थे, जो जाते रहें थे। "
खूब लड़-झगड़ आखिरकार अपनी जगह डिबेट में पक्की कर ली हिमा ने ।
"जाओ मना नहीं करूँगा ,पर कुछ कर नहीं पाओगी । " टीचर अपनी चहेती के ना जा पाने पर झुंझलाकर बोलें।
सुनते ही आग बबूला हो उठी हिमा, पर चुप्पी साध ली । माँ की बातें याद आ गयी ! बड़ो की बात बुरी लगे यदि कभी ,तो मुहँ से नहीं अपने काम से जबाब देना ।
"कहाँ खोयी हो हिमा?? तुम्हारा नाम एनाउंस हो रहा !" आज बीस दिनों बाद डिबेट में प्रथम आने का अवार्ड ऑडोटोरियम में मिलना। पूरा ऑडोटोरियम ताली की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था।
प्रिंसिपल से अवार्ड लेते समय उस टीचर को नजरों से ही ज़बाब दे रही थी हिमा।
टीचर यह कहते हुए मुहँ पीटकर लाल कर रहें थें कि "तुम तो बड़ी प्रतिभाशाली हो, अब तक कहाँ छुपी हुई थी तुम्हारी 'प्रतिभा की उड़ान'। सुनकर हिमा व्यंग से मुस्करा उठी ।
"अगली उड़ान के लिय फिर तैयार रहना |" शाबाशी देते हुए टीचर बोलें|

1 comment:

Kailash Sharma said...

बिना अवसर दिए हुनर कहाँ पता चलता है..बहुत सुन्दर लघु कथा..