Saturday 22 August 2015

खुशबू चंदन की


“अरे ! यह किताब ! यह तो मेरी कहानी संग्रह है | यह आपके हाथ ! आज मुझको  कैसे पढ़ने की इच्छा हुई !!”
“तुम्हें तो कब से पढ़ रहा हूँ, पर जान ही नहीं पाया कि तुम  छुपी रुस्तम भी हो |
क्या लिखती हो ! आज पता चला। एक कहानी पढ़कर तो  हँसी ही नहीं  रुक रही है।”
“कौन सी कहानी पढ़कर हँसी का फव्वारा फूट पड़ा है जनाब ?”
“अरे ये  वाली ‘जाहिल पिया ! कहीं इस कहानी के जरिये मुझ पर तो गुबार नहीं निकाली हो |” कहानी वाला पेज खोलकर निगाहें तिरक्षी करते हुए कहा |
“ह्ह्ह्हह तुम भी न ! सब मर्द एक जैसे ही होते हो, शंकालु। सब इमेजिनेशन है | सच्चाई तो  हींग माफ़िक होगी, समझे बुढऊ।” दोनों ही उन्मुक्त हँसी हँसने लगें |
“एक बात पुछु ?”
“हाँ भई हाँ, पूछो! तुमको कब से इजाजत लेने की जरूरत पड़ने लगी।! ”
“मेरी हर आवाज पर तुम सामने होती थी। बच्चों को भी कभी भी अकेले एक पल के लिए नहीं रहने दिया। फिर ये कहानियों  के लिए समय कब निकाल लेती थी तुम ?”
“काम तो हाथ करते थे न, दिमाग़  तो कहानी बुनता था फिर रात बिरात कलम उन्हें संग्रह कर लेता था | ”
“तुम्हारी कहानी की तरह ही तुम्हारे जवाब भी लाजव़ाब हैं।”
"हुँह!!” चलो अब खाना खा लो बहुत तारीफ़ हो गयी। ”
“हाँ चलो, अब खा ही लूँ ! नहीं तो ‘भूखा पति‘ कहानी लिख दोगी।” फिर से ठहाका गूँज उठा कमरे में। ..सविता मिश्रा

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