Thursday 29 October 2015

~सुसंस्कार~


ससुर-सास गाँव से आते ही न चाय पिया न पानी । बहू से पूछताछ करने लगें ।
"बहू , सुना हैं तू तलवार बाजी सीखा रहीं हैं बिटिया को |"
"किसने कहाँ बाबूजी , वो मुए लफंगे अफवाह उड़ाते रहते | तलवारबाजी सिखाकर शादी व्याह में रोड़े थोड़े डालना हैं मुझे | वो तो झाँसी की रानी का मंचन चल रहा | आपकी पोती रानी लक्ष्मीबाई का किरदार निभा रही | इस लिय थोड़ा सा सीख रही हैं बस|"
"तभी कहूँ कि मोहन तो ऐसा न करेगा कि लड़की को तलवार सिखाये और लड़के को रोटी बनाना | कहाँ हैं मोहन, उससे कहना कि दोनों को एक दूजे का सम्मान करना सिखाये | "
"अरे जी, तुम क्या समझोंगे ! क्या लड़के ,क्या लड़की सबको आजकल की हवा लग गयी हैं | अब लड़कियां घर में कहाँ रहती और लड़के भी रसोई में दो-चार पकवान बना ही लेवे।" पत्नी बोल उठी
"हा तू तो खूब समझती हैं तभी लड़की को घर में कैद रख सोची वह सुरक्षित रहेंगी | उसे भी जमाने की हवा लगने दी होती तो आज ...|"
माहौल गमगीन हो गया | सहसा गाँव के ही लड़के द्वारा सोनी का चीर हरन आँखों के सामने गुजरने लगा | घर में बंद रहने के कारण वह लड़को से नजर भी मिलाने से डरती थी विरोध क्या करती | सोनी की माँ के आँखों से दर्द बहने लगा ।
"गलती तेरी भी न सोनी की अम्मा मैं भी तो समभागी हूँ | काश शिक्षक का फर्ज भी निभाते हुय अपने गाँव के बच्चों में सुसंस्कार बांटे होते तो बेटी का दर्द नासूर बन ना रिसता रहता |" सविता मिश्रा

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