Friday 8 July 2016

~इशारा ~


आज घर में तूफ़ान सा आया था| सारी अस्तव्यस्त चीजें सही स्थान पर रखी जा रहीं थीं | घर को बड़े सलीके से सजाया जा रहा था| पुरे मुहल्ले में लड्डू बाँटने की तैयारी पूरी हो चुकी थी | बधाइयों का तो जैसे ताँता लगा था| मोबाईल की घंटी हर क्षण घनघना उठ रही थी | जब से खबर आई थी कि अंजू ने आईएएस में टॉप किया |अंजू की ख़ुशी का ठिकाना न था | माँ-बाप के कदम तो जमीं पर ही न थे | परिवार का कोई सदस्य थक कर लेटा-बैठा न था| सब कुछ न कुछ करें जा रहें थें | पत्रकार इन्टरव्यू के लिए बस आने ही वाले थे |
अंजू अपने पिता की ख़ुशी को देख, न चाहते हुए कुछ साल पीछे का वह दिन याद करने लगी, जब घर में ऐसे ही तूफ़ान आया था | सब चीजें अस्त व्यस्त हो गयी थीं | अलमारी में रखी उसकी किताबें जमीं में बिखर गई थीं | पापा के क्रोध का शिकार हुआ उसके मोबाईल का पुरजा-पुरजा इधर उधर जमीं पर बिखरा पड़ा था | आग बबूला हो पापा ने फरमान जारी कर दिया था कि कोई जरूरत नहीं आगे पढ़ने की | घर बैठो, अपने माँ से भोजन बनाना सीखो |
माँ को भी कहाँ छोड़े थे,'देख लिया लाड प्यार का नतीजा | बड़ा जुनून था न कि अंश और इसे एक सा माहौल देकर एक मिसाल कायम करने की| एक भी संस्कार न दिए | अवारा घुमती रहती है; उसी का खामियाजा हैं | फोर्टी परसेंट नम्बर आये हैं इंटरमिडीएट में | सिखाओ अब बेटियों वाले गुण | बहुत जल्द शादी खोज अपने घर से विदा करता हूँ इसे |" गुस्से में बस बोले चले जा रहें थें |

कितना रोई-गिड़गिड़ाई थी मैं | पापा रत्ती भर भी न पिघले थे | माँ से वादा किया कि मैं सिर्फ पढूंगी और कुछ न; न दोस्त, न टीवी, न मोबाईल, कुछ भी न | किताबी कीड़ा हुई तब कहीं जाके तूफ़ान ठहरा था | फिर भी माँ को महीनों लग गये थे पापा को मुझे काँलेज में एडमिशन के लिए मनाने में |
माँ सर पर हाथ फेर बोली "अंजू, बेटा पत्रकार आ गए |" सुनते ही वर्तमान में लौटी तो देखा तूफ़ान थम चूका था | कल और आज के तूफ़ान में जमीन-आसमान का फर्क नजर आ रहा था | कल के उस क्रोध से तमतमाये चेहरे से आज फूलों की वारिस हो रहीं थी|
पत्रकार का पहला सवाल, "अंजू जी आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देंगी |"
अंजू ने सामने बैठे पिता की ओर 'इशारा' बस कर दिया | पिता का सीना गर्व से तन गया |
माँ अपने दिए ,संस्कार, पर गदगद हो पिता की ओर देखने लगीं | सविता

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