Monday 23 January 2017

बदलाव

"चलो सुमीss! चलो भई..!"
"......."
"अरे कहाँ खो गयी, चलो घर नहीं चलना है क्या ?" वह चिल्लाते हुए बोला।
"मैं कौन?
"सुमी, तुम मेरी पत्नी, इन बच्चों की माँ और कौन !" भीड़ में खड़े होने का अहसास होते ही धीरे से वह बोला।
"नहीं, मैं रावण हूँ।" सुमी ने आँखे बड़ी करते हुए कहा।
"कैसा मजाक है सुमी। रावण का पुतला तो तुम्हारे सामने खड़ा है!"
"मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, मैं सचमुच रावण हूँ। देखो रावण के दस नहीं, नौ सिर है.. ।"
"वह गलती से बना दिया होगा बनाने वाले ने। अब बकवास मत करो तुम। चलो, जल्दी घर चलो।" झुंझलाते हुए वह बोला।
"नहीं ..., वह कमजोरी का दसवाँ सिर मैं हूँ। " दृणता से बोली वह।
"तुम रावण हो ! फिर मैं कौन हूँ ?" भीड़ को देखकर वह थोड़ा असहज हुआ। फिर मज़ाक उड़ाकर बात को आगे बढ़ाते हुए वह सुमि से बोला।
"तुम राम हो, हमेशा से मैं तुम्हारे द्वारा और तुम्हारे ही कारण डरती आई हूँ। परन्तु अब नहीं, मैं अब जीना चाहती हूँ। मैं अपनी छोटी-छोटी गलतियों की ऐसी भयानक सजा बार-बार नहीं भुगतना चाहती हूँ!" आवेग में आकर सुमी बोलने लगी।
"मैंने तो तुमसे कभी तेज आव़ाज में बात भी नहीं की सुमी।" लोगों की भीड़ को अपनी तरफ आता देखकर वह बोला।
"तुमने बिना वजह सीता की परीक्षा ली। निर्दोष होते हुए भी वनवास का फरमान सुना दिया। फिर भी मर्यादा पुरुष के रूप में तुम्हारी पूजा होती है। और मैं, मैंने तो कुछ भी नहीं किया। मैं मर्यादित होकर भी तुम्हारे कारण युगों से अपमान सहती आ रहीं हूँ।" व्यथित होती हुई सुमि रुंधी आवाज में बोलती जा रही थी।
"पागल हो गयी है ! जाकर किसी मनोचिकित्सक को दिखाइए इन्हें !" पूरे पंडाल में कुछ पुरुषों के ऐसे ही कठोर शब्दों का शोर उठने लगा था। अपने पक्ष में शोर सुनते ही राहुल का सीना चौड़ा हो गया।
सुमी सकपकाई, लेकिन जल्दी ही सम्भलकर दृढ़ हो तीखे स्वर में बोली- "तुम, राम का यह अपना दिखावटी स्वरूप अब त्यागो। हम स्त्रियों में जो ईष्या, क्रोध, वाचालता आदि दिखते हैं, वह सप्रयास तुम दिखाते हो। लेकिन...."
"जितना बोलना हो, सब घर में बोलना, यहाँ से चलो अभी!"
"नहीं! पुतला दहन के साथ मुझे अपने अंदर का भय भी यहीं दहन करना है। तुम्हारे अंदर तो कई दोष विराजमान हैं। पर समाज में हम स्त्रियाँ ही तुम्हारे उन रूपों पर परदा डाल देतीं हैं।" रोष उभर आया था सुमि के स्वर में।
रावण का पुतला जलने लगा था, सब भयभीत हो पीछे हटने लगे थे। राम बने पात्र भी पीछे हटते हुए जरा-सा लड़खड़ाये।
उधर  कमजोरी के खत्म होते ही सुमी का ललाट दीप्तिमान हो उठा था। कई स्त्रियाँ, भीड़ से निकलकर उसके समर्थन में आकार खड़ी हों गयी थीं । पुरुष आवाज दबने लगी थी। अपराधबोध से उबरा कमजोरी का त्याग कर  दसवाँ सिर अब हर तरफ हुँकार भर रहा था।
रावण का पुतला खाक हो चुका था। धीरे-धीरे वातावरण सामान्य होने लगा। आगे-आगे चलने वाले पति, अब अपनी-अपनी पत्नियों के हमकदम हों, वहां से वापस अपने-अपने घर जाने लगे थे।
--00---
 

No comments: