Monday 23 January 2017

भूख -

भूख -


" अब क्या हुआ जो तू दो महीने  में ही इस डेहरी पर फिर से सर पटकने आ गयी ? कहती थी बहुत प्यार से रखेगा वह ! कितना समझाया था तुझे, पर तू एक भी बात न सुनने को तैयार थी !"

"प्यारी शहद भरी बातों में फंस गयीं थी मौसी! सच कहती हूँ अब कभी भी तेरा दर न छोड़ के जाऊँगी|" मौसी के पैरों में पड़ी बिलखती आँखों में पुराना सारा वाक्या चलचित्र की भांति तैरने लगा था |


वह थैली से पाउडर लिपस्टिक निकाल कर सृंगार कर ही रही थी कि मुनेश कोठे पर आ गया था| थैली जबरजस्ती छिनकर उसने बाहर फेंक दी थी|

"यह क्या कर रहे हो?"

"तुमसे कितनी बार कहा  रसिको के लिए सृंगार-पटार छोड़| चल मेरे साथ रानी बना के रखूँगा|" खूबसूरत चेहरे पर हाथ फिराते हुए बोला था वह।

"कैसे विश्वास करूं तुम्हारा, तुम मर्द लोग सब एक जैसे ही होतें हों! यहाँ आराम से रह रही हूँ| मौसी मेरे  शौक हों, कोई तकलीफ हों हर एक चीज का ध्यान रखतीं  है बिलकुल बेटी की तरह|"

"मैं भी रखूँगा तेरा ध्यान..!"

"दो साल पहले ऐसा ही कुछ कहके ले गया था रौनक| जैसे ही परिवार वालों को बताया मेरे बारें में| घर से निकाल दिया था कुलटा कहके ससुर ने| वह सिर झुकाये खड़ा रह गया था|"

"मेरा तो परिवार है ही नहीं ! चल मेरे साथ।" 

फिर ऐसा हुआ तो! मौसी भली औरत है मुझे फिर से अपने आंचल में छुपा लीं| वरना कहाँ जाती मैं! बाप ने तो गरीबी से तंग आकर  मौसी के हाथों बेच ही गया था मुझे|" जख्म आँखों से रिस आए|

"मैं तेरे साथ ऐसा कुछ न करूंगा, विश्वास कर मेरा!"
"दो बार धोखा खा चुकी हूँ, तिबारा धोखा खाना मुर्खता है| मुनेश तू जा मैं न आऊँगी तेरे साथ|" अपनी सृंगार की पोटली उठाने बढ़ी जमुना|

"सच्ची कह रहा हूँ, बड़े प्यार से रखूँगा! कोई भी तकलीफ न दूंगा तुझे| मेरे तो माँ बाप भी नहीं हैं।" उसे पकड़ते हुए बाहें पसार कर मुनेश बोला|

यह सुनते ही जमुना उसकी खुली बाहों में सिमटकर रौनक से मिला दर्द भूल गयी थी|

जैसे ही मौसी ने अपने पैरों पर से उसे उठाया वह कराह उठी मुनेश द्वारा की गयी पिटाई के दर्द से|

सिसकते हुए बोली- "मौसी तू बुरे काम में भी कितना ख्याल रखती है, और वह जानवर रोज चार को ले आता था| रूपये कमाने की मशीन बना छोड़ा था मुझे!"
" मुझे तो पहली ही बार में मक्कारी दिख गयी थी उसकी आँखों में..!" मौसी बोली।
"एक थैला रख रखा था उसने मौसी। रोज ही जब तक उसका थैला नोटों से भर   जाता ह मुझे कुत्तों के सामने डालता रहता था |" सिसकते हुए जमुना बोली।
"ओह, इतना कमीना था !"
"स्साला कुत्ता कहीं का| आss थू मर्दों पे |  स्साले कहते रहते है औरत ही औरत की दुश्मन हैं। हम औरतों के असली दुश्मन तो aise पुरुष है साले |" मौसी की दहलीज पर कराहते हुए उसकी जबान ही न अब आंखे भी अंगार बरसा रहीं थीं|

उसके दुःख से व्यथित होकर मौसी ने बाहें पसारी तो मौसी की बाँहों में सिमटकर अपना सारा ही दर्द वह भूल गयी| सविता मिश्रा

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