Friday 10 November 2017

मीठा जहर

"अरे भैया, क्यों ब्रांडेड का चस्का लगा रहे हो। आगे ब्रांडेड कपड़ों की माँग करेगा तो कहाँ से दिलवा पाऊँगी मैं। तुम तो जानते ही हो, इनकी कमाई में बड़ी मुश्किल से पढ़ाई का खर्च ही निभा पा रही हूँ। ट्यूशन का अतिरिक्त खर्च ही भारी पड़ रहा हैं।'' भैया के हाथ में बेटे के लिए महँगे कपड़े देखकर उर्मी बोली।
फिर उसने बेटे से कहा, "अच्छा रोहित, ये सम्भालकर रखना। अगले महीने ही तो तुम्हारा जन्मदिन है, उसमें पहनना।"

"अरे दी, आप भी न!" भाई बोला। फिर वह रोहित को संबोधित हुआ, "बेटा, जाओ और पहनो अभी। जन्मदिन पर मामू नये दिला देंगे।"
रोहित ख़ुशी से झूम उठा और बोला, "मामू कितने अच्छे है, देखा न मम्मी…एक आप और पापा हैं जो कुछ नहीं दिलाते।"
उर्मी चाय बनाने चल दी। तभी उसे भाभी की आवाज़ सुनाई दी, "भांजे को इतने महँगे कपड़े ! कभी हमारे लिए भी कुछ सोचोगे?"
“शीअ…! अरे पगली, सब-कुछ तेरे लिए ही तो है। उन्हें तो ब्रांडेड का चस्का लगा रहा हूँ। जीजू ने सालों पहले मुझे 'शौकीन मिजाज' कहकर पैसे देने से मना किया था, अब दिखाऊँगा उन्हें।"
उर्मि को काटो तो खून नहीं। बेटा ब्रांडेड कपड़ों में सामने खड़ा पूछ रहा था, "कैसा लग रहा हूँ, मम्मी?"
राजकुमार-सा लगता बेटा अब उसे भिखारी-सा दिख रहा था।
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सविता मिश्रा 'अक्षजा'
'सपने बुनते हुए' साँझा संग्रह में प्रकाशित २०१७