Sunday 3 December 2017

मोह ("चिलक")

टीस
"अँजुली में गंगाजल भरकर यह कैसा संकल्प ले रहे हो रघुवीर बेटा? इस तरह संकल्प लेने का मतलब भी पता है तुम्हें !" गंगा नदी में घुटनों तक पानी में खड़े अपने बेटे को संकल्प लेते देख पूछ बैठा पिता |
"पिताजी ! आप अन्दर-ही-अंदर घुलते जा रहे हैं | कितनी व्याधियों ने आपको घेर लिया है | नाती-पोतों की किलकारियों से भरा घर, फिर भी आपके चेहरे पर मैंने आज तक मुस्कराहट.. |"
आहत पिता ने कहा- "बेटा ! अपने नन्हें-मुन्हें बच्चों को बिलखता हुआ छोड़कर कोई माँ कैसे जा सकती है ! इस कैसे-क्यों का प्रश्न मेरे जख्मों को भरने ही नहीं देता |"
"पिताजी तभी तो..!"
पिता बेटे की बात को बीच में काटते हुए बोले - "बेटा ! पैंतीस सालों में परिजनों के कटाक्ष को दिल में दफ़न करना सीख गया हूँ मैं | उसके जाने के बाद समय के साथ समझौता भी कर लिया था मैंने | हो सकता है उसके लिए उस व्यक्ति का प्यार मेरे प्यार से ज्यादा हो ! इसलिए वो मेरा साथ छोड़कर, उसके साथ चली गयी हो |"
"मैं उन्हें ...!"
बेटा क्रोध में बोल ही रहा था कि पिता ने दुखी मन से कहा -"फिर भी बेटा! मैं सब कुछ भूलना चाहता हूँ! परन्तु यह समाज मेरे जख्म को जब-तब कुरेदता रहता है |"
"समाज के द्वारा आप पर होते कटाक्ष की इसी ज्वाला में जलकर तो मैं आज संकल्प ले रहा हूँ | मैं माँ का मस्तक आपके चरणों में ले आकर रख दूँगा पिता जी, बिलकुल परशुराम की तरह |"
"बेटा! गिरा दो अँजुली का जल | तुम परशुराम भले बन जाओ, पर मैं जमदग्नि नहीं बन सकता हूँ |"
--००---
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
आगरा
November 30, 2015 obo में ..
*****************

No comments: