Saturday 23 December 2017

२) "लघुकथा अनवरत" साँझा-लघुकथा-संग्रह

'लघुकथा अनवरत' सत्र २०१६ साँझा-लघुकथा-संग्रह-- "अयन प्रकाशन" 
सम्पादक द्वय ..श्री सुकेश साहनी और श्री रामेश्वर काम्बोज |
विमोचन दिल्ली में पुस्तक मेले में जनवरी २०१६

प्रकाशित चार लघुकथाएँ--
१..पेट की मज़बूरी
२..पुरानी खाई -पीई हड्डी
३..ढाढ़स
४..भाग्य का लिखा

१..पेट की मज़बूरी -

एक बूढ़े बाबा हाथ में झंडा लिए बढ़े ही जा रहे थे, कइयों ने टोका क्योंकि चीफ मिनिस्टर का मंच सजा था, ऐसे कोई ऐरा-गैरा कैसे उनके मंच पर जा सकता था |
बब्बू आगे बढ़ के बोला "बाबा, आप मंच पर मत जाइए, यहाँ बैठिये आप के लिए यही कुर्सी डाल देते हैं |"
"बाबा सुनिए तो..." पर बाबा कहाँ रुकने वाले थे |
जैसे ही 'आयोजक' की नज़र पड़ी, लगा दिए बाबा को दो डंडे, "बूढ़े तुझे समझाया जा रहा है, पर तेरे समझ में नहीं आ रहा |"
आँख में आँसू भर बाबा बोले, "हाँ बेटा, आजादी के लिए लड़ने से पहले समझना चाहिए था हमें कि हमारी ऐसी कद्र होगी | बहू-बेटा चिल्लाते रहते हैं कि बाप कागजों में मर गया २५ साल से ...पर हमारे लिए बोझ बना बैठा है | तो आज निकल आया पोते के हाथ से यह झंडा लेकर..., कभी यही झंडा बड़े शान से ले चलता था, पर आज मायूस हूँ जिन्दा जो नहीं हूँ ....|" आँखों से झर-झर आँसू बहते देख आसपास के सारे लोगों की ऑंखें नम हो गईं |
बब्बू ने सोचा जो आजादी के लिए लड़ा, कष्ट झेला वह ...और जिसने कुछ नहीं किया देश के लिए वह मलाई ....,छी...!
"पेट की मज़बूरी है बाबा वरना ..." रुँधे गले से बोल बब्बू चुप हो गया |
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"पेट की मज़बूरी" श्री कमल चोपड़ा द्वारा सम्पादित "संरचना-८" २०१५ पत्रिका में भी छपी |

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२..पुरानी खाई -पीई हड्डी~

अस्त्र-शस्त्रों से लैस पुलिस की भारी भीड़ के बीच एक बिना जान-जहान के बूढ़े बाबा और दो औरतों को कचहरी गेट के अन्दर घुसते देख सुरक्षाकर्मी सकते में आ गए |
"अरे! ये गाँधी टोपी धारी कौन हैं ?"
"कोई क्रिमिनल तो न लागे, होता तो हथकड़ी होती |"
"पर, फिर इतने हथियार बंद पुलिसकर्मी कैसे-क्यों साथ हैं इसके ?" गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मी आपस में फुसफूसा रहे थे |
एक ने आगे बढ़ एक पुलिस कर्मी से पूछ ही लिया, "क्या किया है इसने ? इतना मरियल सा कोई बड़ा अपराध तो कर न सके है |"
"अरे इसके शरीर नहीं अक्ल और हिम्मत पर जाओ !! बड़ा पहुँचा हुआ है | पूरे गाँव को बरगलाकर आत्महत्या को उकसा रहा था |" सिपाही बोला |
"अच्छा! लेकिन क्यों ?? सुरक्षाकर्मी ने पूछा |
"खेती बर्बाद होने का मुवावजा दस-दस हजार लेने की जिद में दस दिन से धरने पर बैठा था | आज मुवावजा न मिलने पर इसने और इसकी बेटी, बीवी ने तो मिट्टी का तेल उड़ेल लिया था | मौके पर पुलिस बल पहले से मौजूद था अतः उठा लाए |"
"बूढ़े में इसके लिए जान कैसे आई ?" सुरक्षाकर्मी उसके मरियल से शरीर पर नजर दौड़ाते हुए बोला |
"अरे जब भूखों मरने की नौबत आती है न तो मुर्दे से में भी जान आ जाती है, ये तो फिर भी 'पुरानी खाई -पीई हड्डी' है |" व्यंग्य से कहते हुए दोनों फ़ोर्स के साथ आगे बढ़ गया |
"गाँधी टोपी में इतना दम, तो गाँधी में ..." सुरक्षाकर्मी बुदबुदाकर रह गया |
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३..ढाढ़स~

लैपटाप बेटी के हाथों में देख माता -पिता प्रसन्न थे | हों भी क्यों न, आखिर चीफ़ मिनिस्टर साहब से जो मिला था | उनकी बेटी पूरे गाँव में अकेली प्रतिभाशाली छात्रों में चुनी गई थी |
पूरा कुनबा लैपटाप के डिब्बों में कैद तस्वीरें देखने बैठ गया |
"बिट्टी, इ सब का है ? लाल-पीला |" माँ पहली बार रंगबिरंगे भोजन को देख पूछ बैठी |
"अम्मा, ये लजीज पकवान हैं | बड़े बड़े होटलों में ऐसे ही पकवान परोसे जाते हैं और घरो में भी ऐसे ही तरह तरह का भोजन करते हैं लोग |"
"और दाल रोटी ?"
"अम्मा, दाल रोटी तो बस हम गरीबों का भोजन है | अमीर तो शाही-पनीर, पनीर टिक्का , लच्छेदार पराठा आदि खाते हैं |
पीछे स्कूल जाने के लिए तैयार खड़ा जीतू तपाक से बोला - "दीदी, मुझे भी खाना है यह !"
"जितुवा तू फिर चिपक गवा |" अम्मा गुस्सा होती हुई बोली |
" अरे परवतिया के बाबू, इसको सकूल छोड़ आओ, देर भई तो मास्टर भगा देगा |"
जीतू रोते हुए बोला- "मुझे नहीं पढ़ना, दीदी के साथ लैपटाप पर पिक्चर देखना है |"
"अरे बाबू, पढ़ेगा नहीं तो मेरे जैसे ये लैपटाप कैसे पायेगा | तेजतर्रार छात्र को सरकार लैपटाप देती है कमजोर को थोड़े | "
जूते पहनाते हुए पार्वती बोली, "और कल खाना है न रंगबिरंगा पकवान | आज ही बीबी जी कहीं थी, कल किटी है जल्दी आ जाना | किटी में खूब बचता हैं बढ़िया-बढ़िया पकवान | वो सब तेरे लिए लेती आऊँगी |" सुनकर जीतू के साथ- साथ बाबा के मुँह में भी पानी आ गया | सामने आई नमक रोटी की थाली ठेल चल दिए |
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Jul 6, 2015 को ओबीओ में लिखी|
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४..भाग्य का लिखा ~


शादी तय होने की बात पर रश्मि का गुस्सा फूट पड़ा माँ पर .... "क्या चाहती हैं आप ? क्यों पर कुतरना चाह रही हैं मेरे |"
"उन्मुक्त हो उड़ रही हो | तुम्हारी उड़ान पर किसी ने पाबन्दी लगायी क्या कभी ?" माँ ने रोष में जवाब दिया |
" हाँ माँ लगाई !! " खीझकर रश्मि बोली |
" पढाया-लिखाया , जो चाहा वो दिया | कौन सी पाबन्दी लगाई तुम पर |"
" तेईस की उम्र में ही पाँव में बेड़िया डाल दीं आपने और पूछ रही हैं कौन सी पाबन्दी लगायी ? खुला आकाश बाहें फैलाये मेरे स्वागत के लिए बेताब था, पर आपने मेरे पर ही कतर दिए |"
" ऐसा क्यों बोल रही है ? शादी तो करनी ही थी तेरी | अच्छा लड़का बड़े भाग्य से मिलता है | तेरे पापा के अंडर ट्रेनिंग किया है | तेरे पापा कह रहे थे एक दिन कामयाब आइपीएस बनेगा |"
" हाँ माँ पापा की तरह कामयाब आइपीएस तो होगा, पर पापा की तरह पति भी बन गया तो ?" चेहरे पर कई भाव आये चले गये |
बेटी के शब्द सुमन के दिल में 'जहर बुझे तीर' से चुभे | चेहरे पर उभरते हुए दर्द को छुपाते हुए बोली- " भाग्य का लिखा कोई मिटा सकता है क्या ?"
"हाँ माँ, मिटा सकता है... जैसे पापा ने आपको इस्तीफा दिला मिटाया आपका अपना भाग्य | नहीं तो आज आप पापा से भी बड़ी अफसर होतीं पर ...अपनी लकीर बड़ी तो खींच नहीं पाए, पर आपकी लकीर छोटी.. छोड़िए, उन्होंने तो वजूद ही मिटा दिया |"
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1 comment:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...


पूर्ण विराम सही करके यह वर्ड फ़ाइल में है ...९/९/२०१९ को बदला ..सही करने के बाद यहाँ करेक्शन नहीं किया