Sunday 24 December 2017

३) 'अपने अपने क्षितिज' साझा-लघुकथा-संग्रह

'अपने अपने क्षितिज' साझा-लघुकथा-संग्रह -वनिका पब्लिकेशन 
सम्पादक द्वय -डॉ. जितेन्द्र जीतू जी और डॉ. नीरज सुधांशु जी |विमोचन- दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में जनवरी २०१७ में हुआ |
प्रकाशित चार लघुकथाएँ .

१..ज़िद नहीं 
2...हिम्मत
३...सुरक्षा घेरा
4..दर्द |



भूमिका में रचना का पोस्टमार्टम करना अच्छा लगा | ५६ लघुकथाकारों में से कुछ में अपना नाम भी शामिल है | ख़ुशी  के साथ मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है | उत्साहवर्धन के लिए जितेन्द्र जीतू भैया का दिल से शुक्रिया :)
 
१.."ज़िद नहीं" लघुकथा इसी ब्लॉग के इस लिंक पर ..:)
 https://kavitabhawana.blogspot.in/.../blog-post_11.html...

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2..
हिम्मत (परिवर्तन)

नये साल की वह पहली सुबह जैसे बर्फानी पानी में नहा कर आई थी।10 बज चुके थे पर सूर्यदेव अब तक धुंध का धवल कंबल ओढ़े आराम फरमा रहे थे। अनु ने पूजा की थाली तैयार की और ननद के कमरे में झाँककर कहा, "नेहा! प्लीज नोनू सो रहा है, उसका ध्यान रखना। मैं मंदिर जा कर आती हूँ।"
शीत लहर के तमाचे खाते और ठिठुरते हुए उसने मंदिर वाले पथ पर पग धरे ही थे कि उसके पैरों को जैसे जकड़ लिया तीखी आवाज़ों ने। सहसा आवाज़ शोर में तब्दील हो रही थी। माहौल गर्म हो उठा था मुहल्ले का।
"मारो सालों को, काट दो सालों को। इनकी बहू-बेटियाँ भी न बचने पाएँ।" आक्रामक आवाज़ें गूँज उठी थीं।
सुषमा डर से थर-थर काँपने लगी। खुद को बचाए या घर में छोड़ आए अपने बेटे नोनू और ननद को। दरवाज़ा तो ऐसे ही ओढ़का आई थी। घर की ओर लपकी। उधर से भी वैसा ही शोर कानों में पड़ने लगा। मन्दिर की सीढ़ी पर ही उसके पाँव स्थिर से हो गए थे |
पंडित जी फ़रिश्ते की तरह लपके और उसका हाथ पकड़ उसे लगभग घसीटते हुए मन्दिर के अंदर करके दरवाजा बंद कर लिया।
"पंडित जी मेरी ननद और ..।"
"पहले अपनी जान बचाओं फिर ननद की सोचना।"
"ऐसे कैसे पंडित जी, ननद मेरी जिम्मेदारी है, उसको कुछ हो गया तो मैं अपने पति को क्या जवाब दूँगी। और मेरा नन्हा बच्चा भी है उसके साथ।"
"चिंता न करो! भगवान रक्षा करेंगे उन दोनों की भी।"
"नहीं पंडित जी! मुझे जाना होगा, मैं हाथ-पर-हाथ धरे बैठी रही तो मेरी दुनिया लुट जाएगी। भगवान भी तो उसकी मदद करते हैं न! जो खुद की मदद के लिए आगे बढ़ता है।" कहते हुए दरवाज़ा खोल निकल आई बाहर।"
शोर रह-रहकर  अब भी सुनाई दे रहा था। पीछे देखा तो पंडित जी भी साथ थे।
"पंडित जी आप!"
"हाँ बेटी, जब तुझ में इतनी हिम्मत है तो फिर मैं क्यों कायर बनूँ। मेरे लिए तो पूरा मुहल्ला मेरा परिवार है। सब की सुरक्षा मेरी भी तो जिम्मेदारी है।"
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9 September 2016

जिंदगीनामा:लघुकथाओं का सफर   सविता मिश्रा ’अक्षजा’
    
३..."सुरक्षा घेरा" लघुकथा इसी ब्लॉग के इस लिंक पर ..:)
 http://kavitabhawana.blogspot.in/2015/04/blog-post_13.html


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4.."दर्द" लघुकथा इसी ब्लॉग के इस लिंक पर ..:)
 http://kavitabhawana.blogspot.in/2015/07/blog-post.html


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