Saturday 9 December 2017

१..) 'मुट्ठी भर अक्षर' साझा-लघुकथा-संग्रह

२४ अप्रैल २०१५ में 'मुट्ठी भर अक्षर' साझा-संग्रह ...हिंदी युग्म प्रकाशन
सम्पादक द्वय ..विवेक कुमार और श्रीमती नीलिमा शर्मा |
विमोचन दिल्ली के हिंदी भवन में 24 April 2015 को |
हमारा पहला साझा-लघुकथा-संग्रह |
प्रकाशित छः लघुकथाएँ ..
१..हस्ताक्षर
२...हाथी के दांत
३...जन्मदाता
४...आस
५...बदलते भाव
६...खुशी में छुपा गम
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इन तीस बाक्सों में बंद एक शक्ल अपनी भी और 'मुट्ठी भर अक्षर' में चंद अक्षर के माध्यम से अपनी भी भावनायें व्यक्त हैं लघुकथा रूप में ...| हम तो हम बाकी २९ रचनाकार और भी हैं | आप सब पढ़ रहे हैं न ?
हमारी लिखी हुई लघुकथा न पसंद आये तो और सब अच्छे लेखक हैं | पैसा पानी में नहीं जायेगा ...| गारंटी ..न न वो तो संभव नहीं 
30 संभावनाशील लघुकथाकारों की प्रतिनिधि लघुकथाओं के संग्रह 'मुट्ठीभरअक्षर' का संपादन किया है विवेक कुमार और नीलिमा शर्मा निविया ने।


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दिल्ली ..लघुकथा ..'मुठ्ठी भर अक्षर' के विमोचन के वक्त अपनी दो कथाओं का पाठ करते हुए हिंदी भवन के प्रांगण में ..24 April 2015...
https://www.youtube.com/watch?v=mm7KcQ981i4...
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मुट्ठी भर अक्षर में निहित अपनी छ: लघुकथाएँ ....
१) हस्ताक्षर

कभी हर बात पर ज्वालामुखी की तरह उबल पड़ती थी शिखा | वही ज्वालामुखी अब राख के ढेर में तब्दील हो चुका था | जिस नींव से उसके क्रोध की इमारत बुलंद खड़ी थी, वो बादल फटने से जमीदोश हो चुकी थी | उस तबाही का मंजर उसकी आँखों के सामने रह-रह के तैर जाता था |
कभी माँ-बाप की कमी खलती, तो कभी भाई बहनों की याद में वह रो पड़ती थी |
 रोने पर भी भाइयों के पास नहीं जाने मिलेगा, जानती थी शिखा ! फिर भी आँसू थे कि झर-झर बहते ही रहते थे | बहते हुए आँसू भी काफ़ी कहाँ थे उस शांत ज्वालामुखी को भी ठंडा रखने के लिए | अतः उसकी गर्मागर्मी हो ही जाती थी पति और उसके परिवार वालों से | जब तब पति, पिता की छोड़ी दौलत में हिस्सा मांगने का दबाव डालता रहता था |
दहेज़ लोभी पति ने उस दिन हाथ उठाया तो ज्वालामुखी की राख में दबी चिंगारी दहक उठी | वह पति का घर छोड़कर मायके की राह पकड़ ली | मायके की गलियों में अभी दाखिल भी नहीं हुई थी कि बाढ़ में खंडहर हो चुका घर देखकर शिखा फफक पड़ी |
अचानक मोबाइल की घंटी सुनसान वातावरण को झंकृत कर गई| मोबाइल उठाकर शिखा कुछ बोल भी न पाई थी कि दूसरी ओर से आवाज आई, "कल तक तलाक के पेपर पहुँच जायेंगे, हस्ताक्षर कर देना |" रोते रोते बेहाल हो शिखा वहीं गिर पड़ी |
थोड़ी देर बाद ही वकील ने उसके पति को फोन करके कहा, ''अब आपको तलाकनामे पर शिखा के हस्ताक्षर की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी और न हम वकीलों की ही | भगवान ने खुद ही हस्ताक्षर कर दिया |''

29/8/2014--नयालेखन ग्रुप
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२) "हाथी के दांत"

लोगों से साल में सौ घंटे सफाई की मोदीजी की अपील से उत्कर्ष की जान सांसत में थी | वह पिछले दो दिन से बुझा-बुझा सा था| आज बहुत खुश देखकर उसकी पत्नी ने पूछा .. "क्यों जी! बड़े खुश हो क्या बात है?"
उत्कर्ष बोला -"ख़ुशी की ही बात है न कि नौकरी से निकाले जाने का कोई खतरा नहीं रहा | इतनी मुश्किल से नौकरी मिली है | डबल एम.ए. करने के बाद भी कितने साल नौकरी के लिए भटका हूँ, तुम्हें पता ही है | वह तो भला हो बाबू कृपा शंकर जी का कि उन्होंने ले-देकर यह नौकरी पक्की करवा दी | वर्ना भूखों मरते या फिर चोरी कर रहे होते और तेरे पिता, तेरा हाथ भी ना देते मेरे हाथ में...|"
कहकर ठहाका लगाकर हँस पड़ा उत्कर्ष और कहना ज़ारी रखा - "मुझे लगा मोदीजी के आह्वान से लोग सफाई खुद ही कर लेंगे ! सड़क पर गंदगी नहीं करेंगे! यह सोचकर मैं थोड़ा उदास था | पर आज सड़क पर कूड़ा बिखरा देख दिल खुश हो गया | और जानती है, मजे की बात यह है कि कल जो फोटो में थे झाड़ू लिए हुए थें, उन्ही की सोसायटी के सामने ज्यादा कूड़ा बिखरा था |
आज सच में बहुत खुश हूँ | जान बची लाखों पाए | बड़े-बड़े लोग सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए ही हैं ! सफाई तो हम जैसे जरूरत-मंदों की ही मज़बूरी है |
आज उन्हीं सोसायटी वालों ने अच्छे से सफाई करने को कह पूरे हजार का नोट दिया | कह रहे थे कि कोई चैनल वालें कवरिंग करने, किसी बड़े नेता के साथ आ रहे हैं |.....सविता मिश्रा
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३) "जन्मदाता"

"आज तो आपने माँ दुर्गा और गणेशजी की मूर्तियाँ बेचकर काफी रुपया इकट्ठा कर लिया |"
"हाँ इमली, कर तो लिया |"
"अरे, तो फिर उदासी क्यों हो ? "
"देख रहा हूँ कि आज लोग मूर्ति खरीदते समय वह भाव नहीं रखते, जो पहले रक्खा करते थे |"
"तुम्हें कैसे पता चला कि लोग अब वैसा भाव नहीं रखते ?"
उसने आँख दिखाते हुए कहा, "तुम्हीं बताओ, तुम्हें कैसे पता चलता है कि किसने तुम्हारे बच्चों को किस नजर से देखा ? रोज ही शिकायत करती हो कि वह हमारे बबुआ को बड़ी जलन भाव से देख रही थी या वह हमारी बिटिया को ललचाई हुई गिद्ध नजरों से घूर रहा था ?"
"ये भी कोई बात हुई ! मैं माँ हूँ उनकी | अपने बच्चों पर गिरती हर नजर को भलीभाती पढ़ लेती हूँ मैं |"
"तो फिर ये मूर्तियाँ भी तो मेरे लिए मेरे संतानों जैसी ही हैं न !" वह उसकी आँखों में नजरें गड़ाकर बोला |
इमली उसकी झील-सी निगाहों में झाँकती ही रह गयी |
सविता मिश्रा ‘अक्षजा'
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४)"आस"

कृषकाय भीखू एक तोंदधारी सेठ के अनाज-गोदाम में काम कर रहा था |
गोदाम में बिखरे दानों पे सेठ को चलता देख भीखू को माँ की सीख याद आ गयी - 'अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए |'
...ये अमीर लोग क्या जाने इन दानों की कीमत? यह तो कोई मुझसे पूछे, जिसके घर में हांडी में अन्न नहीं, पानी पकता है |
दोस्त ने कहा था कि मोटा गैंडा काम खूब कराता है | मजदूरी की जगह वहाँ पर गिरे अनाज घर ले जाने को बोल देता है | रूपये के बदले अनाज में तो फायदा है, बस इसी आस में आज इस सेठ के गोदाम में आ गया था वह | सोचता हुआ सेठ को कुछ न कह सकने पर खीझ उठा भीखू |
उसने नजर दौड़ाई आज गोदाम में कुछ ज्यादा ही अनाज फैला था | विद्रूप हँसी, हँसा ! फिर बोरे को सरकाते हुए जान-बूझकर उसने और अनाज गिरा दिया | गिरे हुए ढेर को देख भीखू खुश हो मन ही मन बोला- "आज माँ भूखी नहीं सोयेगी..|"
झाड़ू मार ही रहा था कि कानों में भीमकाय सेठ की कर्कश आवाज गूँजी - "अब्बे छोरे ! जल्दी-जल्दी हाथ चला, खाया नहीं है क्या?"
सुनते ही भीखू सकपका कर थम गया | उसके भयभीत चेहरे पर टिकी सूनी आँखें पनीली हो उठी |
"अरे क्या हुआ...काम नहीं होता तो फिर यहाँ आया क्यों ?"
"सेठ जी ! सुबह से कुछ नहीं खाया हूँ | माँ कल रात में चावल का माड़ पिला के सुला दी थी ..|" भीखू मिमियाया |
"ओह ! तो ये बात है | ले, तू ही खा ले | आज सेठाइन ने ज्यादा ही खाना भेजा है..! तू भी भरपेट खा ले | और हाँ, खाकर अच्छे से साफ़-सफाई करना ! भले कितनी ही देर हो जाये |" भीखू की व्यथा सुन उसका ह्रदय नारियल-सा हो गया था | अतः आधी टिफ़िन भीखू को दे डाली |
बढ़िया स्वादिष्ट खाना देखते ही भीखू की वर्षो से अतृप्त इन्द्रियाँ तृप्त हों गयी |
जमीन पर गिरी गेहूँ की ढ़ेरी देख सेठ मुस्कराया, फिर पलटकर भीखू से बोला- "और हाँ, फर्श पर बिखरे अनाज को बीनकर घर लेते जाना, मजदूरी |"
ख़ुशी-ख़ुशी चहकती आवाज में भीखू बोला- "जी, सेठ जी !" अब उसके हाथ बड़ी फुर्ती से चलने लगे |
........#सविता मिश्रा '#अक्षजा'
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(अगस्त २०१७ में उद्गार ग्रुप में उत्कृष्ट रचना सम्मान मिला)
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५)  बदलते भाव-

"मर गया नालायक! देखो तो, कितना खून पीया था | उड़ भी नहीं पाया, जबकि सम्भव है इसने खतरा महसूस कर लिया होगा |" 
"अरे मम्मी, आप दुखी नहीं है अपना ही खून देखकर ?"
"नहीं, क्योंकि यह अब मेरा खून नहीं था, इसका हो गया था |"
"आप भी न, उस दिन उँगली कटने पर तो आपके आँसू नहीं रुक रहे थे | और आज अपना ही खून देखकर आप खुश हैं |"
''जो मेरा होता है, उसके नष्ट हो जाने पर कष्ट होता है। पर मेरा होकर भी जो मेरा न रहे, तब उसके नष्ट हो जाने पर मन को संतुष्टि होती है, समझा?''
"बस मम्मी, अब यह मत कहने लगिएगा कि यह खून पीने वाला मोटा मच्छर, कोई ठग व्यापारी या नेता है या फिर कोई भ्रष्ट अफसर! और उससे निकला खून, आपके  खून पसीने की कमाई ! जिसे पचा पाना सबके बस की बात नहीं !"
"मेरा पुत्तर, कितना समझने लगा है मुझे..! छीन-झपटकर कोई कब तक जिंदा रह सकता है भला | पाप का घड़ा एक न एक दिन तो फूटता ही है |"
24 April 2015
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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६) "भूख"

थका हारा डॉक्टर घर पहुँचते ही सोफे पर पसर गया |
पत्नी के हाथो से पानी का गिलास लेते हुए बोला, "लोग कितने निर्दयी होते हैं वसुधा! जानती हो, आज एक औरत पाँचवाँ ..! उसका पति पुराने ख्यालात का है, उसे लड़का चाहिए और बार-बार गर्भ में लड़की ही आ रही है |"
"ओह..! तो आज फिर अबार्शन ..!"
"चलो छोड़ो ! हमें क्या करना | हमें तो हमारी ख़ुशी मिली, उन्हें उनकी |" लंबी साँस भरते हुए डॉक्टर बोला |
उठकर ब्रीफकेस से अपनी ख़ुशी को निकालकर तिजोरी में बंद कर दिया | भोजनोपरांत डॉक्टर चैन की नींद सो गया |
बिस्तर पर लेटते ही रोज की तरह पत्नी सोचती हुई बुदबुदाई- कहीं यही कारण तो नहीं, जो आज तक हमारी गोद सूनी है ! पर इन्हें कौन समझाए, कि रूपये की इनकी ये भूख, घर में सुख नहीं बल्कि अदृश्य कांटे भर रही है ! जो सिर्फ मुझे दंश दे रहा | जब तक इन्हें इसकी चुभन होगी तब तक शायद बहुत देर हो जाए |" एक बार फिर आँसुओं की नन्हीं नन्हीं बूँदें तकिए की गोद में सोने चलीं थीं | और वसुधा के कानों में बच्चों की किलकारियों को सुनने की भूख फिर उमड़ आयी थीं |
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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पांचवी और छटवीं  शीर्षक सहित थोड़ी बदल दी गयी है |


सालो से मन था कि sheroes जाके मिलकर आये । वर्ण पिरामिड और मुट्ठी भर अक्षर' उन्हें भेंट भी करके आये।😊

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर।

संजय भास्‍कर said...

.......बेहतरीन्।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बहुत शुक्रिया आपका

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बहुत शुक्रिया भैया आपका 🙏