Saturday 24 March 2018

जुड़ाव

"दृश्टि" नामक राजनैतिक लघुकथा अंक में प्रकाशित कथा...सम्पादक -अशोक जैन भैया का आभार 


गणपति विसर्जन और जुमे की नमाज़ दोनों ही एक साथ पड़ गए थे| सड़क पर दोनों सम्प्रदायों को आमने-सामने टीवी पर दिखाया जा रहा था| इस अव्यवस्था को लेकर पुलिस की किरकिरी होती देख, फोन घुमा दिया एसएसपी साहब ने|
"जय हिन्द 'सर'|"
"'जय हिन्द' वो इलाका इतना सेंसटिव है| फिर भी सड़क के एक छोर पर नमाज़ पढ़ने करने की इजाज़त क्यों दे दी गयी ?" एसएसपी साहब गुस्से में इंस्पेक्टर से बोले|
" सर जी! भीड़ ज्यादा हो गयी थी| मस्जिद में जगह बची ही नहीं थी| अतः डीएम साहबsss !" इंस्पेक्टर साहब की आवाज़ हलक से निकल नहीं पा रही थी, अधिकारी के गुस्से के सामने|
"जुलूस को ही थोड़ी देर रोक लेते, नमाज अदा होने तक कम से कम|" राय जाहिर करते हुए बोले|
"जुलूस में भी भारी तादाद में लोग थे सर| रोकने से बवाल कर सकते थे|" अपनी समस्या बता दी इंस्पेक्टर ने|
हल्की-सी भी चिंगारी उठी तो आग की तरह फैल जायेगी| सख्ती फिर भी तुम सबने नहीं दिखाई | कुछ हुआ तो डीएम साहब तो जायेंगे ही, साथ में हम सब को भी डूबा के जायेंगे|" चिंता जताते हुए वे गुर्राए|
"चिंता की बात नहीं हैं सर|" वह आत्मविश्वास से बोला|
"क्यों ? इतना यकीं कैसे है तुन्हें ? जबकि मालूम है कि हर छोटी बात पर उस क्षेत्र में दंगा हो जाता है?"
सर, क्योंकि क्षेत्राधिकारी मंजू खान सर नमाजियों के साथ और एसपी कबीर वर्मा साहब जुलूस के साथ निरंतर लगे हुए हैं| और और दूसरे खुशी की बात यह है कि दोनों के ही तरफ, कोई नेता नहीं दिखाई पड़ा अभी तक|” इंस्पेक्टर साहब ने स्पष्टीकरण दिया|
"ओह, अच्छा! तब तो चिंता की कोई बात नहीं है| किसी नेता का वहाँ न होना ही तुम्हारे यकीं को पुख्ता करता है| फिर भी अलर्ट रहना !" एसएसपी साहब निश्चिन्त होकर बोले|
"जी सर" उनके माथे का पसीना अब सूखने लगा था|
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
November 1, 2015 नया लेखन ग्रुप के चित्र पर लिखी कथा

Friday 9 March 2018

"उद्गार" लघुकथा संकलन

"उद्गार" लघुकथा संकलन - वनिका पब्लिकेशन
संकलनकर्ता - रश्मि सिन्हा दीदी
प्रकाशित - फ़रवरी २०१८
इस संकलन में मेरी चार कथाओं को स्थान दिया गया है | समूह की संचालिका रश्मि सिन्हा दीदी का आभार। साथ के साथ नीरज शर्मा दीदी का बहुत बहुत धन्यवाद --१--दोगलापन
२--खुलती गिरहें
३--सहयोगी
४-- कृतघ्न
--००---

१--दोगलापन -लघुकथा इस लिंक पर ---
२-खुलती गिरहें- लघुकथा इस लिंक पर ---
३--सहयोगी- लघुकथा इस लिंक पर ---
http://kavitabhawana.blogspot.in/2017/05/blog-post_27.html
--००--
४- कृतघ्न

जूता फैक्ट्री में आग लगने से कई जाने चली गयी थीं| जिनकी इस हादसे में मृत्यु हो गयी थी उनके परिवार वालों को लाखों का मुवावजा मिला, ऊपर से एक सदस्य को नौकरी भी मिली| यह खबर लगते ही आशीष बहुत दुखी हुआ| 
उसी दुर्घटना में गम्भीर रूप से घायल हुए अपने बापू की तरफ देखकर बुदबुदाया- "मेरी तो किस्मत ही खोटी है|"
खटिया पर पड़ा उसका बाप कन्हैया भी दुखी था कि अब वह काम करके अपने बेरोजगार बेटे-बहू का पालन-पोषण नहीं कर पायेगा| अभी तक जो बहू खांसने पर भी, पानी लेकर 'बापू क्या हुआ?' पूछने दौड़ी आती थी, आज खाने की थाली में दो सूखी रोटी और प्याज पटक गयी थी|
कन्हैया पानी मांगता रह गया न आशीष ने सुना और न ही बहू ने..| सूखी रोटी गले में फँस जाने से उसकी सांस अटक गयी| जब बेटे ने बापू की लाश देखी तो दौड़ा-दौड़ा फैक्ट्री पहुँच गया| मैनेजर से राय-बात करके पीड़ित परिवार में अपना स्थान भी पक्का करा लिया|
घर पहुँचते ही नीतू ने झल्लाते हुए कहा, "अब इनका क्या करें? कितनी देर कर दिए आने में!"
मुवावज़ा मिलने और नौकरी लगने कि ख़ुशी में भूल गया कि मृत बापू की कृपा से है सब| अब तक की 'बेकारी का दर्द' शराब में डुबोकर अपने जमीर को भी मार आया था वह| खटिया पर गिरते ही बेफ़िक्री से बोला- "सो जाओ, सुबह देखेंगे|"
---००---

सविता मिश्रा 'अक्षजा'
Savita Mishra
=============================