Friday 9 March 2018

"उद्गार" लघुकथा संकलन

"उद्गार" लघुकथा संकलन - वनिका पब्लिकेशन
संकलनकर्ता - रश्मि सिन्हा दीदी
प्रकाशित - फ़रवरी २०१८
इस संकलन में मेरी चार कथाओं को स्थान दिया गया है | समूह की संचालिका रश्मि सिन्हा दीदी का आभार। साथ के साथ नीरज शर्मा दीदी का बहुत बहुत धन्यवाद --१--दोगलापन
२--खुलती गिरहें
३--सहयोगी
४-- कृतघ्न
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१--दोगलापन -लघुकथा इस लिंक पर ---
२-खुलती गिरहें- लघुकथा इस लिंक पर ---
३--सहयोगी- लघुकथा इस लिंक पर ---
http://kavitabhawana.blogspot.in/2017/05/blog-post_27.html
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४- कृतघ्न

जूता फैक्ट्री में आग लगने से कई जाने चली गयी थीं| जिनकी इस हादसे में मृत्यु हो गयी थी उनके परिवार वालों को लाखों का मुवावजा मिला, ऊपर से एक सदस्य को नौकरी भी मिली| यह खबर लगते ही आशीष बहुत दुखी हुआ| 
उसी दुर्घटना में गम्भीर रूप से घायल हुए अपने बापू की तरफ देखकर बुदबुदाया- "मेरी तो किस्मत ही खोटी है|"
खटिया पर पड़ा उसका बाप कन्हैया भी दुखी था कि अब वह काम करके अपने बेरोजगार बेटे-बहू का पालन-पोषण नहीं कर पायेगा| अभी तक जो बहू खांसने पर भी, पानी लेकर 'बापू क्या हुआ?' पूछने दौड़ी आती थी, आज खाने की थाली में दो सूखी रोटी और प्याज पटक गयी थी|
कन्हैया पानी मांगता रह गया न आशीष ने सुना और न ही बहू ने..| सूखी रोटी गले में फँस जाने से उसकी सांस अटक गयी| जब बेटे ने बापू की लाश देखी तो दौड़ा-दौड़ा फैक्ट्री पहुँच गया| मैनेजर से राय-बात करके पीड़ित परिवार में अपना स्थान भी पक्का करा लिया|
घर पहुँचते ही नीतू ने झल्लाते हुए कहा, "अब इनका क्या करें? कितनी देर कर दिए आने में!"
मुवावज़ा मिलने और नौकरी लगने कि ख़ुशी में भूल गया कि मृत बापू की कृपा से है सब| अब तक की 'बेकारी का दर्द' शराब में डुबोकर अपने जमीर को भी मार आया था वह| खटिया पर गिरते ही बेफ़िक्री से बोला- "सो जाओ, सुबह देखेंगे|"
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सविता मिश्रा 'अक्षजा'
Savita Mishra
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